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मुझको वह बचपन दे दो

सहर

खामोश साज हो तुम

बिहार चाहे विकास

पढ लेते तो पत्रकार न होते

हंगामा है क्‍यों बरपा थोडी सी जो रंग ली है

बीसीसीआई इतना खेल क्‍यों कराती है

झगडा करती रहती है

वो मेरी है गीता सार

ये रात बडी ही काली है

ऐसा मुझको साथी दो

जिद अधूरी पर तमन्‍नाएं पूरी

मुझको मेरी पाती दो

कामयाबी की छाया है कुंठा

मेरे मन के अंधियारे में.....

जिंदगी

मैं अजनबी हूं

खुशी वो मुझे बेदाम दे गया

दोस्‍त कफन सजाये बैठे हैं

डायरी में अनायास ही लिख दिया

वे तो मेरे आंसू हैं

दोस्‍त ने गद्दार कहा

हम दोस्‍तों का सिगरेट संकल्‍प

बेबस कदम और मंजिल

गरीबी करती मीठे रिश्‍ते

श्रद्धा ने किया अंधा

'वे दिन बहूत अच्छे थे'

शरद जी चीनी खा लो...

गागर में सागर, भारत देश

घर छोड़ते ही रिश्तों की तलाश

मैं हरिद्वार गया था, अमर ने इस्तीफा दे दिया

ठण्ड में चाय बना चश्मा