बेबस कदम और मंजिल

बेबस कदमों से मंजिल को चला हूं मैं
मन है सोने का पर लोहे में ढला हूं मैं
कहीं उजाला करता होगा मेरा भी इंतजार
उस उजाले के लिए सालों जला हूं मैं
मिट गई तन्‍हाई मेरी खो गया याराना
खुदा जाने किस रिश्‍ते से छला हूं मैं
सूखी नजरों को अब दरिए ही दुहाई चाहिए
आपकी ही तरह मां की गोद में पला हूं मैं

Comments

Shekhar Kumawat said…
bahut khub

bahut bahut badhai

shekhar kumawat