गरीबी करती मीठे रिश्‍ते

आजकल एक शौक अपना लिया है। देर रात चाय पीने की तलब से बेचैन हो उठता हूं। ऐसे में रूम के कीचन में भोर के तीन या चार बजे के करीब कुछ बनाना शोभा नहीं देता। फिर तलब भी शांत करनी होती है। इसलिए घर के कुछ दूर पर लगने वाले एक चाय और पराठा के ठेले पर एक प्‍याली चाय की अर्जी दे आता हूं। वहां, ऐसे तो कुछ खास नहीं मिलता मगर रुपये के लिहाज से जो स्‍वाद मिल जाता है वह अपने आप में ही काफी मजेदार होता है।
आइए अब उस ठेले पर हिमालय सरीखे व्‍यवसाय के बारे में कुछ जानकारी देता हूं। उसे ठेले को एक दंपति मिलकर चलाते हैं। पति के मुताबिक, वह उत्‍तर प्रदेश के हरदोई जिले का रहने वाला है, जबकि उसकी शादी कानपुर में हुई है। इससे इतर एक बात बताना चाहूंगा कि उनके हाथों में कोई यादगार स्‍वाद नहीं है। मगर उन दोनों की सूझबूझ और हंसी मजाक कर चाय पराठा बनाने और खिलाने के तरीके ने मुझे मुरीद सा कर दिया है। उन दोनों को देर रात कब किस समय कौन सा ग्राहक कहां से छूटकर आ रहा है। वह क्‍या खाएगा, क्‍या नहीं खाएगा और चाय पीएगा की नहीं या फिर सिगरेट में दिलचस्‍पी है या नहीं तक का पूरा ब्‍यौरा याद रखते हैं।
चलिए यह बात भी साधारण हुई कि उन्‍हें तो पैसा कमाना है तो याद रखना ही होगा। मगर एक चीज जो मैं कभी नहीं भूलूंगा वह है उन दोनों का गरीबी में भी हंसी मजाक कर लेने का हसीन तरीका। सच गरीबी में इंसान अपने परिवार को जितना समय दे देता है उतना रईस नहीं। वहीं, घर के पास एक नाईन टू नाईन नाम का बेहतरीन रेस्‍टोरेंट भी है। उसे भी दो बेटे और मां-बाप वाला एक परिवार चलाता है। मगर वे हंसते हुए किसी का स्‍वागत नहीं करते। वे हमेशा एक-दूसरे को हिसाब देने में ही व्‍यस्‍त रहते हैं। ऐसे में उनके बीच प्‍यार कहीं से भी नहीं झलकता। भगवान करे आम आदमी ही बना रहूं। मगर रईसियत के साथ। शेष फिर कभी.......

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