मैं हरिद्वार गया था, अमर ने इस्तीफा दे दिया


मैं हरिद्वार गया था। पिछले लेख में इसकी चर्चा कर चूका हूँ। मगर अपनी यात्रा का पूरा ब्यौरा नहीं दे पाया था। पेशे से पत्रकार हूँ इसलिए बताये बिना मानूंगा नहीं। डेल्ही से बस में सवार होकर मैं हरिद्वार अपनी दीदी के घर पहुंचा। जाते समय मुझे सिर्फ अपनी भांजी और भांजे का चेहरा याद आ रहा था, लेकिन लौटते समय उनके साथ ही हरिद्वार के हर चौराहे की याद आ रही थी।
मेरी बहन क घर कनखल में है। जहाँ माता पार्वती सटी हुईं थीं। कुछ दूरी पर दक्ष मंदिर है। विशालकाय, खुबसूरत और गंगा के पानी से धुला हुआ। दक्ष मंदिर पहुँचने के लिए माता आनंदमयी द्वार से प्रवेश करना होता है। वहीँ गंगा जी के पानी को मुख्य धरा से मोड़कर एक नहर का रूप दिया गया है। इसमें कुछ ऐसी व्यवस्था की गयी है की पानी आनंदमयी द्वार के प्रवेश पूल के नीचे आकर जमा होता है। इस कारण वहां पानी का जमाव हो जाता है, जिसमें छोटी-बड़ी मछलियों का झुण्ड जमा हो जाता है। मेरी बहन ने बताया की स्थानीय लोग इन मछलियों को चीनी मिला आटा खिलाते हैं। हाँ, बता देना जरूरी है की यहाँ मछलियों का शिकार नहीं किया जाता। खैर, मुझे जानकारी देने के साथ ही मेरी बहन घर से तैयार कर के लाई हुई आटे की लोई मुझे दे देती है। मैं उस लोई के छोटे-छोटे टुकड़े कर पानी में फेंकने लगता हूँ। कुछ देर बाद आटे की मीठी गोली पाने के लिए मछलियाँ पानी में कूदने लगीं। सच, इस दृश्य को मैं पूरी उम्र नहीं भुला सकता।
अब आगे बढ़ते हैं। दक्ष मंदिर की तरफ। अपनी आदत से मजबूर मैं बहन के साथ मंदिर तो गया पर मुझे ज्यादा सुकून गंगा जी के पानी में पैर डुबो के बैठने में मिला। दीदी कुछ नाराज भी हुई, मगर मुझे आदत सी हो गयी है। शाम के समय मंदिर के पिछले हिस्से से दिखने वाली पहाड़ों को देखकर मन को सुकून मिल रहा था। तभी बच्चों ने भूख लगने की बात कही और हमें घर वापस लौटना पड़ा। सुबह के समय मंदिर का नजारा देखने की ख्वाहिश में मैं अगले दिन सुबह पांच बजे ही घर से निकल पड़ा। पैदल घूमते हुए सुबह के समय हवा की शुद्धता को महसूस करना तो मैं भूल ही गया था। दरअसल, डेल्ही में समय का अभाव और गाड़ियों के धुएं ने माहौल ही कुछ ऐसा बना रखा है।.............. हरिद्वार से जुडी आगे की बातें अगले अध्याय में लिखूंगा। अब कुछ सामाजिक बात...

सपा को पहचान दिलाने वाले अमर सिंह ने सपा के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। उम्र के इस पड़ाव में आखिर मुलायम सिंह में ऐसी क्या कठोरता आ गयी है की लोग उनसे अलग होते जा रहे हैं। यह बात मैं आपसे पूछ नहीं रहा हूँ, मुलायम को सलाह दे रहा हूँ। इस धरतीपुत्र को ऐसा क्या हुआ की इनकी रासायनिक और भौतिक खाद कहे जाने वाले इनके मित्र इनसे दूर होते जा रहे हैं। मीडिया में यह भी खबर आयी की अमर ने अपनी कोई झ्ट्कामार तकनीक क इस्तेमाल किया है, पार्टी को अपनी हैसियत का परिचय देने के लिए। मगर शाम तलक आभास हो गया की अबकी मामला कुछ संगीन है.... आगे न जाने क्या होगा....
अरे हाँ, एक बात तो मैं बताना ही भूल गया। बोर्डर पर हमारे सैनिकों के लिए अभी तक जैकेट नहीं खरीदे गये हैं शायद, मई या जून तक ले लिया जाएगा। फिलहाल, उन्हें अपने कपड़ों से काम चलाना होगा। अरे हमारे नेताओं को सालभर जैकेट खरीदने की फुर्सत ही नहीं मिल पायी थी। मीडिया भी बेमतलब उन्हें निशाने पर लिए रहती है। नेता जी, आप सभी से अनुरोध है कि आप पत्रकारों पर ध्यान मत दीजिये। गर्मी आते ही लोग भूल जायेंगे कि हमारे सैनिकों को ठण्ड के मौसम में जैकेट कि जरूरत थी...

Comments

Udan Tashtari said…
इस बार बद्रीनाथ तक हो आईये तो शायद मनमोहन सिंग भी इस्तीफा दे दें.