वे तो मेरे आंसू हैं

जो सागर से भी भारी है
झरने जैसा जो जारी है
दुनिया जिससे हारी है
वे तो मेरे आंसू हैं।
वह बहा है जब मैं ठगा गया
सब कुछ जब मैं गंवा गया
जब पैरों के नीचे हवा गया
वे तो मेरे आंसू हैं।
धारा जिनमें भाव बहे
दुख-दर्दों का नाव दहे
पत्‍थर जिनको नहीं सहे
वे तो मेरे आंसू हैं।
जलन हो जिनमें ज्‍वाला सी
आकर्षण हो बाला सी
बने जहर जो हाला सी
वे तो मेरे आंसू हैं।
कोयले से जले हुए
मोम के जैसे गले हुए
मेरे भीतर जो पले हुए
वे तो मेरे आंसू हैं।
अब तू तो खुद से शर्मिंदा है
चहुंमुखी तेरी ही निन्‍दा है
पर रोकर मन मेरा जिंदा है
वे तो मेरे आंसू हैं।

Comments

Ra said…
जो सागर से भी भारी है
झरने जैसा जो जारी है
दुनिया जिससे हारी है
वे तो मेरे आंसू हैं।

achhi prastuti ...sundar rachna ...badhaai swekaare
Udan Tashtari said…
भावपूर्ण रचना.
Udan Tashtari said…
विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

-समीर लाल ’समीर’
शुभकामनाएँ.!!
वाह क्या आंसू हैं ।

कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
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इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये
Dev said…
बेहतरीन रचना ....
Dhiraj Tiwari said…
TUMHARE AANSU ITNE KAMYAB HONGE MUJHE NAHI PATA THA