ख्वाबों में तुम, लबों पर रूबाई है
हर नज्म लिखने से पहले तुम्हें सुनाई है
वक्त की मजार पर पूछ रहा हूं खुद से
ऐ खुदा तुझे मुझसे क्या रूसवाई है
चलो फिर आम की बागों में गुम हो जाएं
सडकों पर तो लूट और जगहंसाई है
उसने प्यार-मोहब्बत सब दिया टुकडों में
मैं खुद में शहर हूं, फिर भी तन्हाई है।
__________________________
-------------------------------------
3 comments:
कमाल की अभिव्यक्ति है, बेहतरीन!
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
एक आत्मचेतना कलाकार
Post a Comment