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मुझको वह बचपन दे दो

सहर

खामोश साज हो तुम

बिहार चाहे विकास

पढ लेते तो पत्रकार न होते

हंगामा है क्‍यों बरपा थोडी सी जो रंग ली है

बीसीसीआई इतना खेल क्‍यों कराती है

झगडा करती रहती है

वो मेरी है गीता सार

ये रात बडी ही काली है

ऐसा मुझको साथी दो

जिद अधूरी पर तमन्‍नाएं पूरी

मुझको मेरी पाती दो