अजीब बात पर लडती है
फिर भी खूब अकडती है
जब बात कहूं कुछ प्यार भरी
तो मुझ पर हंस पडती है
मैं तंग हूं उस नादां से
वो मुझको उल्लू कहती है
जब डपट पडूं किसी बात पर मैं
तो वो चुप-चुप रहती है
छा जाए सन्नाटा सा
फिर वो खुदबुद-खुदबुद करती है
मैं जब घुटनों पर गिर पडता हूं
तो फिर वो लल्लू कहती है
न जाने क्या वो सोच रही
वो हर पल को बस नोंच रही
वो मुझसे जीने को कहती है
पर किसी दुख को सहती है
खुलकर कह दो सारी बात
बस इतनी अभिलाषा है
जीवन तो है बडा मधुर
क्यों कहती घोर निराशा है?
क्यों कहती घोर निराशा है?
क्यों कहती घोर निराशा है?
फिर भी खूब अकडती है
जब बात कहूं कुछ प्यार भरी
तो मुझ पर हंस पडती है
मैं तंग हूं उस नादां से
वो मुझको उल्लू कहती है
जब डपट पडूं किसी बात पर मैं
तो वो चुप-चुप रहती है
छा जाए सन्नाटा सा
फिर वो खुदबुद-खुदबुद करती है
मैं जब घुटनों पर गिर पडता हूं
तो फिर वो लल्लू कहती है
न जाने क्या वो सोच रही
वो हर पल को बस नोंच रही
वो मुझसे जीने को कहती है
पर किसी दुख को सहती है
खुलकर कह दो सारी बात
बस इतनी अभिलाषा है
जीवन तो है बडा मधुर
क्यों कहती घोर निराशा है?
क्यों कहती घोर निराशा है?
क्यों कहती घोर निराशा है?
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