हमें जिंदगी को जीने के लिए कितने ही बंधनों को मानना होता है। भले ही हम उन बंधनों को तोडने के लिए और खुद को मुक्त करने के लिए पूरी ताकत लगा दें। मगर आखिर में हमें उन जंजीरों को अपने गले लगाना ही पडता है। शायद इसे ही जिंदगी कहते हैं।
हमें जिंदगी को जीने के लिए कितने ही बंधनों को मानना होता है। भले ही हम उन बंधनों को तोडने के लिए और खुद को मुक्त करने के लिए पूरी ताकत लगा दें। मगर आखिर में हमें उन जंजीरों को अपने गले लगाना ही पडता है। शायद इसे ही जिंदगी कहते हैं।
Comments
shikha shukla
http://baatbatasha.blogspot.com/