आज अनायास ही कई दिन के बाद लिखने क मन होने लगा। लगा कुछ है जो मैं कहना तो चाहता हूँ, मगर कह नहीं पा रहा। येकीन मानिये, लिखने तो बैठ गया लेकिन दिमाग में बात आ ही नहीं रही की मैं कहना क्या चाहता हूँ। खैर, मेरे दिमाग क हाल छोडिये। जब याद आएगा तो बता दूंगा। मगर आपने कुछ ध्यान दिया हाल के दिनों पर। जी, माथा खुजाने की जरूरत नहीं, मैं तेलंगाना की बात कर रहा हूँ। तेलंगाना को अलग होकर देश की छाती पैर एक और राज्य का रूप ले लेना चाहिए या नहीं। हमारे नेता इस मुद्दे को सुलझा ही रहे थे की। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को न जाने कहाँ से क्या याद आ गया। अचानक बोल पड़ीं यूपी को भी काट, जगह-जगह से बाँट दो। मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से आपसे यह जानना चाहता हूँ की इतनी तेजी यूपी के विकास में दिखतीं तो बात कुछ और होती। मगर अपना जोश उनहोंने यूपी को जोड़ने में कम तोड़ने में ज्यादा दिखाया। खैर, आखी हैं तो वे राजनेता ही। फिलहाल, मैं कुछ और कहना चाहता हूँ। आइये उस विषय की तलाश में चलते हैं। आप साथ में हैं न। मुझे आप सबकी जरूरत है। इसलिए, आइये इस आग के समान जलते मुद्दे को ठन्डे बसते में रखकर आगे बढ़ते हैं।
इधर एक मुद्दा और खूब चिंगारी छोड़ रहा है। वह हैं मुद्दा-अ-कोपेनहेगन। पहचान गये होंगे। इसमें इक बात ध्यान देने वाली है। जानते हैं क्या। कवायद दुनिया भर की और होना कुछ नहीं। जी हाँ, अब देख लीजिये। वहां की जनता जितना उफान पर है नेता उतने ही सुस्त। लोग डंडों से मरर खाने को तैयार हैं। जलवायु कको 'ठंडा' करने के लिए। मगर, मजाल है की वहां का कोई नेता अपनी जिम्मेदारी समझते हुए आगे आये।
कहना और भी कुछ था मगर मैं भूल गया। माफ़ कीजिये फिर मिलूँगा.
Comments
Behtar hoki, zile aur badhayen, banisbat ke rajy!
waise aapaane achha mudda uthaya hai to ise hi pura kare .ham sab aapke saath hai.
pls visit
http://dweepanter.blogspot.com
dhanyawad