एक पल का पाप

उस दिन मुझे हुआ क्या था? मैं इतना नासमझ कैसे हो सकता था? उस दिन के बाद से मैं खुद को एक पल के लिए भी माफ़ नहीं कर सका. आज भी सिहरन सी हो जाती है. घर के ठीक सामने सुंदर से छोटे पार्क में बेंच पर बैठकर विजय उस दिन के बारे में सोच रहा था.
वह जानबूझकर सामने खेलते बच्चों की ओर नहीं देख रहा था. वह इमरजेंसी वार्ड में एक दिन की घटना को लेकर इतने अफ़सोस में रहता था कि किसी से नज़र मिलाने से आज भी कतराता था. मुंह चुराता था. कोई पुकारे भी तो अपनी ही बगलों में छुप जाता था.
यही सोचते-सोचते एक बार फिर वह इमरजेंसी वार्ड की उसी पशोपेश वाले माहौल में खुद की मौजूदगी देख रहा था. सामने उसकी पत्नी स्नेहा लेटी हुई थी. वह मां बनने वाली थी. ऑपरेशन थिएटर के ठीक बगल में बने इमरजेंसी वार्ड के सामने की गली में वह बेचैनी से इंतज़ार कर रहा था. वह हर कदम पर नए भाव महसूस कर रहा था. कभी खुश होता नए मेहमान के लिए और कभी बेचैन हो जाता किसी अनहोनी के डर से.
हुआ भी वही, कुछ ही देर में स्नेहा ने एक बच्चे को जन्म दिया. ओटी में एक और महिला थी. उसने भी बच्चा जना था लेकिन इत्तेफाक से उसके परिवार का अभी कोई मौजूद नहीं था. दोनों ही बच्चों को अगल-बगल के पालने में रख दिया गया. मगर विजय को कोई भी बधाई नहीं दे रहा था. बच्चे तो दोनों के किलकारी मार रहे थे. अंदर की हेड नर्स उसके परिचय की थी. फिर भी उसे वह बधाई तो दूर हंसकर देख तक नहीं रही थी. वह किसी शंका से सिहर उठा. वह अपने बच्चे के पालने के करीब पहुंचा. उसने बड़े जोश से उसे उठाया लेकिन पलभर में ही चेहरे पर तनाव छा गया. उसके बच्चे की एक आंख अधखुली थी. उसकी एक ही आंख थी. अगले ही पल विजय ने उस बच्चे को बगल वाले पालने में रख दिया. नर्स चौंक पड़ी. सुधीर हाथ जोड़कर मिन्नतें करने लगा. बोल तो किसी के नहीं छूटे. मगर इस अपराध में रजामंदी दोनों की हो गई.
थोड़ी ही देर में दूसरी महिला का पति आ गया. नर्स ने उसे विजय का विकलांग बच्चा थमा दिया. उसके चेहरे पर भी तनाव छा गया. वह बड़े प्रेम से अपने बच्चे की बंद आंख को चूमते हुए रोने लगा. उसने उसे ऊपरवाले का प्रसाद मान स्वीकार कर लिया. अगले ही पल एक चमत्कार हुआ बच्चे ने जोर से चीत्कार ली. उसकी बंद पलकें खुल गईं. उसकी बंद पलकें खुद ब खुद खुल गईं थीं. कोई हल्की सी परत थी जो विजय के पाप का बोझ न सह सकी. इधर बदला हुआ बच्चा अपनी सांस खो बैठा. अब विजय की गोद में एक बच्चे की लाश थी. वह रो पड़ा. उसके सामने ही इमरजेंसी वार्ड में वह अपनी ही नज़रों में गिर गया.
इतना सब याद करते ही विजय ने खुद को पार्क में पाया. बीस साल पुरानी इस घटना को वह आज भी याद कर सिहर उठता है. वह हर पल सौ मौतें मरता है. स्नेहा की गोद आज भी खाली है. विजय आज भी चुप है. वह आज भी ग़म में है.


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