देश में कोरोना वायरस की चेन तोड़ने के लिए लॉकडाउन का क़दम उठाया गया है. काफी हद तक इसका पालन भी सफलतापूर्वक हो भी रहा है. हालांकि, इस बीच पुलिसकर्मियों को अपनी क्षमता से ज्यादा काम करना पड़ रहा है. कई जगहोंं पर लॉकडाउन का छुटपुट विरोध भी हो रहा है. मगर देश अब भी सुरक्षा घेरे में नज़र आ रहा है. इस बीच इक्कीस दिवसीय लॉकडाउन का ऐलान आधे से ज्यादा बीत चुका है. मगर कोरोना के ज़हरीले घेरे में लोगों की संख्या बढ़ रही है. इन हालातों में लॉकडाउन के खुलते ही इस भयावह बीमारी पर पूरी जीत मिलने के आसार कम दिख रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 मार्च को जब लॉकडाउन की घोषणा की थी तब पूरे देश में आंकड़े मात्र 468 थे. उस समय इस महाबीमारी ने 9 लोगों की ज़िंदगी को शिकार बनाया था. वहीं, 34 मरीज़ ठीक होकर अपने परिवार के बीच लौट चुके थे. मगर अब हालात कुछ और हैं. इनकी संख्या काफी बढ़ गई है. अब हम तीन हजार का आंकड़ा पार करके चार हजारी होने की कगार पर आ रहे हैं. हालांकि, इस बीच मरीज ठीक भी हो रहे हैं. फिर भी जितनी तेजी से यह बीमारी लोगों को अपने पाश में बांध रही है उतनी तेजी से उनका इलाज़ नहीं हो पा रहा है. यकीनन, यह भयावह परिस्थिति है. यह मामला तब और डराता है जब यह दिखता है कि हमारे यहां चिकित्सा के माकूल इंतजामात नहीं हैं. हम विकसित देशों के मुकाबले कोरोना से लड़ने में अक्षम हैं. यूं तो यूरोप के दिग्गज देश भी अपने यहां इस बीमारी को हराने में घुटने टेक चुके हैं. इस नज़रिये से देखें तो यह समझना बहुत आसान है कि यदि हमारे यहां बीमारी काल का रूप ले लेगी तो उससे लड़ना बहुत मुश्किल हो जाएगा. यही कारण है कि भारत सरकार ने अपनी अर्थव्यवस्था को खतरे में डालकर लॉकडाउन करने जैसा मुश्किलों भरा फैसला लेकर सबको सुरक्षित करने का निर्णय लिया है. मगर कोरोना के बढ़ते आंकड़ों ने इस पूरी कवायद की सफलता पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं.
उधर, लोगों के बचत का रूपया खर्च होता जा रहा है. लोग अपनी जरूरतों का सामान लॉकडाउन शुरू होने के समय से महंगे दामों पर खरीद रहे हैं. खासकर, अनाज के दामों में जमकर कालाबाजारी की गई है. प्रदेश सरकारों की पुरजोर कोशिशों के बावजूद महंगाई बढ़ी है. बाजार में माल सप्लाई की चेन कमजोर होने के कारण बड़े व्यापारियों ने जमाखोरी करके मुनाफ़ा कमा लिया है. अब दाम कम होते दिख तो रहे हैं लेकिन जमीनी तौर पर वह अब भी पूरी तरह से खरे उतरते नज़र नहीं आ रहे हैं. ऐसे में महंंगाई का बोझ उठाने के साथ रूपया कमाने की जरूरत ने लोगों को लॉकडाउन में बंद कर रखा है. जाहिर है इस बोझ के बीच जब लॉकडाउन को खोला जाएगा तो हर घर से हुजूम निकलेगा. कोरोना वायरस भी बंद घरों से बाजार में आएगा. ऐसे में इस महाबीमारी के थमने के आसार और कम हो जाएंगे.
सरकार की कोशिशों से लोगों को जनधन खातों सहित विधवा पेंशन व किसानों की लाभार्थी योजनाओं सहित अन्य कई रास्तों से सुविधा पहुंचाने की कोशिश की जा रही है. मगर हमारे देश की संरचना इतनी विशाल और बेढब है कि जन-जन तक सरकारी सुविधा बिना किसी सेंध के पहुंचाना टेढ़ी खीर है. यानी कहानी अब भी ढांक के तीन पात के समान है कि लोगों को असुविधाओं के बीच रूपया कमाने और जीवनयापन करने के लिए लॉकडाउन के खुलने के बाद बाजारों में उतरना ही होगा. इस हाल में कोरोना का संक्रमण कहीं और न बढ़ जाए इसका डर निम्न से लेकर शीर्ष पदों पर बैठे जिम्मेदारों को साफ दिख रहा है.
इन सभी तथ्यों को समझते हुए देश के पास 14 अप्रैल तक लॉकडाउन का गंभीरता से पालन करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. यही एक तरीका है जिससे इस महाकाल को रोका जा सकता है. COVID-19 को पूरी तरह से हराने के लिए लोगों को सेनेटाइजेशन की आदत को अपने जीवन में अपनाए रखना होगा. सोशल डिस्टेंसिंग यानी एक-दूसरे करीब छह फीट की दूरी बनाकर चलने और रहने की आदत को नहीं छोड़ना होगा. लॉकडाउन के खत्म होने के बाद भी इन आदतों को अपनाते हुए बाजारों में रूख करना होगा. ऑफिस आदि के लिए जाते समय भी सोशल डिस्टेंसिंग अपनाते हुए चेहरे को मास्क में ढंके रखना होगा. यही एक रास्ता है जिससे हम इस बीमारी को हरा सकते हैं.
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