फोटो, गूगल इमेज से साभार. |
वामपंथ बनाम दक्षिणपंथ की बहस ने जोर पकड़ रखा है. मुझसे एक मित्र ने सुबह फोन पर पूछा, 'तिवारी तुम वामपंथी हो या दक्षिणपंथी? कुछ स्पष्ट करो, लेखनी से सुहाता नहीं है. कभी किसी को सही कह दोगे तो कभी किसी को.' मैंने टका सा जवाब देना उचित समझा जो जब गलत लगेगा तब उसे ही गलत कहूंगा. अब चाहे भले ही मुझे कोई लाल सलाम समझे चाहे केसरिया प्रेमी.
वैसे बता दूं कि यूं तो वामपंथ मुझे लुभाता है. क्रांति करने की बात सिखाता है. वहीं, दक्षिणपंथ भी मुझे पसंद आता है. राष्ट्रवादी विचारधारा को मैं कभी भी खुद से अलग करके नहीं देख सकता. देशहित में उठाया गया हर कदम अच्छा लगता है. यहां एक बात बड़ी कॉमन है कि दक्षिणपंथ और वामपंथ दोनों में ही स्यापा बहुत फैला है. जित देखो तित रायता. रायता स्नान चालू आहे. जवानी जब सिर चढ़ना शुरू करती है तो वामपंथ काफी प्रिय लगने लगता है. कारण, विद्रोही मन विद्रोह करने को लालायित रहता है. ऐसे में मुझे भी शुरुआती दौर में वामपंथ बड़ा लुभावना महसूस होता रहा. मैंने भी सवाल पूछना अपना जायज हक़ माना. सवाल पूछे भी. जवाब भी मिले. कभी कर्णप्रिय तो कभी कानफोड़ू.
मगर परिपक्व होने के सफर में जो मरने तक निरंतर जारी रहता है, मैंने पाया कि वामपंथ का चोला ओढ़े नामी प्रबुद्धजन सिर्फ कोरा सियापा करने वाले हैं. वे किसी भी फैसले का विरोध करना ही जानते हैं न कि उसका पालन करना पसंद करते हैं. वे हर दावत में जाते तो हैं लेकिन खाते-पीते कुछ नहीं और गिलास तोड़ देते हैं बारह आने के. वे हमेशा ही सावरकर का विरोध करते हैं. गांधीजी की विचारधारा को याद दिलाते हैं. बाबा साहिब अंबेडकर की माला जपते हैं लेकिन व्यक्तिगत जीवन में किसी को भी नहीं मानते. वे जिद्दी होते हैं. अकड़ू होते हैं. अहम बात यह है कि वे स्वघोषित बुद्धिजीवी होते हैं. वे अपने रुपये कभी नहीं छोड़ते बल्कि दूसरों को कहेंगे कि तुम्हारी शर्त से यदि जरा सा भी कम मिले तो बगावत कर दो. वे अपनी रोटी नहीं बांटते. वे सिर्फ ज्ञानवर्षा करते हैं. मसलन, जब JNU में पुलिसवाले जाते हैं तो उन्हें मां-बहन की गाली देते हैं. बोतल फेंकते हैं. मौका पाते ही पीटते हैं लेकिन स्वयं पिटते हैं तो पुलिस की सुरक्षा मांगते हैं. रही बात समाजवाद की तो वे भटकूदास हैं. वे कभी भी मुद्दे का पालन नहीं कर पाते. जहां देखो अनर्गल प्रलापक करते हैं.
उधर, दक्षिणपंथ के क्या कहने. राष्ट्रवाद के नशे में चूर जो मनचाहा वैसा किया. कुल मिलाकर सभी पंथ निरा निखट्टू सरीखे हैं. पेट में रोटी न जाए तो सारा ज्ञान तिलंगे पर सलाम करता नज़र आएगा. सलाह मानो मानवतापंथी बनो. हमारी धरा को किसी और पंथ की कोई आवश्यकता नहीं है. वामपंथ की बात तब करना जब जनता को जनार्दन समझना. मगर अफसोस है कि स्वयं को जनार्दन समझने वाले ही इस समय हर पंथ में सिरमौर बने बैठे हैं.
वंदे मातरम, लाल सलाम, जय भीम, जय समाजवाद.
#लिखने_की_बीमारी_है।।।।।
Comments