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अमर उजाला की वेबसाइट से बतौर साभार ली गई डीएसपी दविंदर सिंह की तस्वीर. |
जम्मू कश्मीर में तैनात डीएसपी दविंदर सिंह की गिरफ्तारी ने बोतल में बंद आतंकी अफजल गुरू जैसे जिन्न को फिर जिंदा कर दिया है. वहीं, देश की सुरक्षा में जुटी जांच एजेंसियों की कार्यशैली भी सवालों के घेरे में है.
जम्मू कश्मीर का नाम मीडिया में हमेशा ही छाया ही रहता है. इन दिनों एक बार फिर चर्चा का बाजार गर्म हो गया है. जेएंडके में तैनात डीएसपी दविंदर सिंह हिजबुल के आतंकियों के साथ गलबहियां करते हुए धरा गया है. बड़ी बात यह है कि उसे तब गिरफ्तार किया गया था जब वह अपने एक आतंकी दोस्त के साथ दिल्ली आ रहा था. बड़ी बात यह नहीं है कि वह आतंकियों के साथ मिला हुआ था. बड़ी बात यह है कि देश की संसद पर हुए आतंकी हमले में फांसी पर चढ़ाए गए अफजल गुरू ने भी अपनी सफाई में यह कहा था कि वह जेएंडके में तैनात डीएसपी दविंदर सिंह के कहने पर ही हमले के मास्टरमाइंड मोहम्मद को लेकर दिल्ली आया था. मगर अफजल की बात को उस समय गंभीरता से नहीं लिया गया. नतीजतन, देश की सर्वाधिक संवेदनशील राज्यों में शुमार जेएंडके में एक आतंकी मित्र (स्लीपर सेल) डीएसपी के पद पर काबिज रहा. इतने पुराने मामले में अब जाकर एक स्लीपर सेल की गिरफ्तारी की जाती है. जांच एजेंसियों को इसके लिए जांच के घेरे में रखना चाहिये. यह देश की सुरक्षा में सेंध सरीखा सवाल है.
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आतंकी अफजल गुरू से बातचीत के आधार पर लिखी गई रिपोर्ट का प्रिंट स्क्रीन. |
दरअसल, अपनी विरोधी ख़बरों के लिए हमेशा ही सुर्खियों में रहने वाली कारवां मैगजीन के कार्यकारी संपादक विनोद के जोस ने आतंकी अफजल गुरू से उसकी फांसी से पहले जेल में जाकर मुलाक़ात की थी. उन्होंने इस आधार पर एक आतंकी को बेगुनाह साबित करते हुए अपनी मैगजीन के लिए एक ख़बर लिखी थी. उसमें अफजल की ज़िंदगी पर प्रकाश डाला गया था. साथ ही, देश की जांच एजेंसियों की क्रूरता की भी चासनी लपेट-लपेटकर बुराई की गई थी. खैर, 'कारवां' मैगजीन की लेखनशैली पर गौर करने से बेहतर है कि इस बात पर ध्यान देने की कोशिश की जाए कि आखिर जांच एजेंसियों ने उस समय अफजल की बात को संज्ञान में लेते हुए तब ही डीएसपी दविंदर सिंह की जांच क्यों नहीं की?
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गूगल इमेज से बतौर साभार ली गई प्रतीकात्मक तस्वीर. |
इतने समय तक आखिर एक स्लीपर सेल देश की सुरक्षा प्रणाली का हिस्सा बनकर क्यों रहा? साथ ही, एक सवाल जन्म लेता है कि क्या वाकई अफजल को फांसी देने से पूर्व मामले की निष्पक्ष जांच नहीं की गई? इस मामले में को गंभीरता से लेना होगा. आज देश में टुकड़े-टुकड़े गैंग ने एक ऐसा माहौल बना रखा है कि हर देशविरोधी हीरो साबित किया जा रहा है. देशहित में उठाये जाने वाले हर क़दम को गलत साबित करने की होड़ सी मची हुई है. ऐसे में देश में स्लीपर सेल की भूमिका निभाने वाले डीएसपी दविंदर सिंह का अब जाकर जांच एजेंसियों के हत्थे चढ़ना अफजल गुरू के समर्थकों के लिए बड़ी भूमिका अदा कर सकता है. वे इस मामले को मोड़ देते हुए फिर से नारे बुलंद कर सकते हैं, 'अफजल गुरू हम शर्मिंदा हैं, तेरे क़ातिल अभी जिंदा हैं.' यानी जांच एजेंसियों में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को इस मसले में उचित निर्णय लेते हुए इस लेटलतीफ धर-पकड़ के लिए जिम्मेदार अफसरों पर कड़ा कदम उठाना चाहिए. देश की आंतरिक सुरक्षा को देखते हुए बहुत ही आवश्यक है कि ऐसी लापरवाहियों की पुनरावृत्ति न हो. उधर, जहां तक अफजल की फांसी की बात है तो यहां यह कहना गलत नहीं है कि 'जैसी करनी, वैसी भरनी' या 'बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय.'
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