गुनगुनाती हुई इक नदी हो तुम...


गुनगुनाती हुई इक नदी हो तुम
इक आवाज़ तो दो यदि हो तुम

हवा की सरसराहट ही काफी है
इक इशारा तो दो जो यहीं हो तुम

तलाशती नज़रें पुकारती हैं तुम्हें
बस ये न कहना कि नहीं हो तुम

भूल जाऊं तुम्हें ये कभी ना कहना
हर याद और बात में सही हो तुम

गुमनाम शायर की शायरी हो तुम
गुनगुनाती हुई इक नदी हो तुम।।।



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