विश्‍व अनुवाद दिवस : 780 भारतीय भाषाओं की खोज करने वाले हैं ‘शब्दवीर’ डॉ गणेश देवी

विश्व अनुवाद दिवस (International Translation Day) यानी किताबों के घर में रहने ‘शब्दवीरों का दिन’. हर बरस 30 सितंबर को यह शब्दों की इस सतरंगी दुनिया को नमन किया जाता है. आइए ऐसे ही एक मौके पर हम बात करते हैं डॉ. गणेश नारायणदास देवी के बारे में. उन्होंने 780 भारतीय भाषाओं की खोजकर अपना विशेष मुक़ाम बनाया है. अब वे विश्व की 6800 भाषाओं पर काम करना चाहते हैं. 

अपनी इस बड़ी उपलब्धि के लिए जाने वाले डॉ. गणेश ने हमेशा ही मीडिया को बताया कि भारतीय भाषाओं की खोज कर उन्हें सूचिबद्ध करना किसी दूसरी दुनिया की यात्रा करने जैसा था. इस सूची में उन्होंने उन भाषाओं को भी स्थान दिया है जो अब पूरी तरह से लुप्त हो चुकी हैं.

उन्होंने अपनी खोज में पाया कि हिमांचल प्रदेश में ‘बर्फ’ शब्द को ही 200 तरीके से पुकारा जाता है. वे मीडिया से बताते हैं कि यह जानना काफी रोचक रहता है. उन्हों ने अपने शोध में पाया है कि राजस्थान में घुमंतू समुदाय के लोगों ने ‘वीराना’ शब्द के लिए अनेक पर्यायवाची बना रखे हैं.

वहीं, महाराष्ट्र के पश्चिमी तटों पर बसे दर्जनों गांवों में बिसरा दी गई पुर्तगाली भाषा का प्रयोग किया जाता है. उनके मुताबिक, ये ग्राम शहर से ज्यादा दूर भी नहीं हैं. फिर भी इनकी भाषा काफी पुरानी है जो आज भी यहां के स्था्नीय लोग इस्तेमाल कर रहे हैं.

उधर, अंडमान और निकोबार में रह रहे कुछ लोग म्यांमार की प्राचीन भाषा ‘कारेन’ का आज भी बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं. साथ ही, गुजरात में रहने वाले कई भारतीय जापानी बोली का इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने यह पाया कि गुजरात में तकरीबन 125 विदेशी भाषाओं को मातृभाषा के तौर पर बोलने वाले रह रहे हैं.

बता दें कि डॉ. देवी गुजरात के वडोदरा में सयाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय 16 साल तक अंग्रेजी के शिक्षक रह चुके हैं. उसके बाद उन्होंने आदिवासियों को समाज की विकासशील मुख्यधारा में लाने के लिए कार्य करना शुरू कर दिया. इसी कारण वे गांव-गांव में जाकर सबसे मिलने लगे. साथ ही, वे 11 भाषाओं में एक पत्रिका का भी प्रकाशन करते हैं.

वे बताते हैं कि वर्ष 1998 में उन्होंने 700 स्थानीय बोलियों में लिखी एक पत्रिका की 700 कॉपियां एक टोकरे में रख दीं. उन्होंंने शाम तक पाया कि हर पत्रिका का 10 रुपये मूल्य चुकाकर ग्रामीणों में स्थानीय भाषा में प्रकाशित सारी पत्रिकाएं खरीद ली थीं. उन्होंने जब स्थानीय लोगों से इस बिक्री का जिक्र किया तो उन्होंने बताया कि पहली बार अपनी बोली में पत्रिका देखकर उन्हें उसे पढ़ने की इच्छा हो गई थी. डॉ. देवी इसे स्थानीय भाषा की शक्ति का प्रबल उदाहरण मानते हैं.

वर्तमान में डॉ. गणेश नारायणदास देवी प्रसिद्ध साहित्यिक आलोचक एवं भाषा अनुसन्धान एवं प्रकाशन केन्द्र, वड़ोदरा के संस्थापक निदेशक हैं.

एक नज़र भारतीय भाषाओं पर... 

वर्ष 1961 में सेंसस ने 1652 भारतीय भाषाओं की गणना की थी.
वर्ष 2010 में लोकभाषा सर्वे में 780 भारतीय भाषाओं की गणना की गई थी.
यूनेस्को  के मुताबिक, इनमें से 197 बोलियां लुप्तगप्राय हो चुकी हैं जबकि 42 अपने अंतिम चलन पर हैं.
उत्तिर-पूर्वी राज्योंे में अरूणांचल प्रदेश और असम में, पश्चिंम में स्थि7त महाराष्ट्रन एवं गुजरात, पूरब के ओडिसा एवं बंगाल और उत्तरर के राजस्था न में सबसे अधिक स्थाटनीय बोलियों का इस्तेेमाल किया जाता है.
भारत में 68 लिपियां अब भी जीवित हैं.
भारत में 35 भाषाओं में अख़बार का प्रकाशन किया जाता है.
देश में 40 फीसदी भारतीय हिंदी बोलते हैं. इसके बाद बंगला बोली को आठ, तेलुगु को 7.1, मराठी को 6.9 और तमिल भाषा को 5.9 प्रतिशत लोगों ने अपना रखा है.
ऑल इंडिया रेडियो (AIR) 120 भाषाओं में अपने कार्यक्रमों का प्रसारण करता है.
भारतीय संसद में मात्र चार प्रतिशत भाषाओं का इस्तेमाल किया जाता है.

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