रावण का पुष्पक विमान. |
एक बात जो सभी धर्मों में कॉमन है वह यह कि उनके देवी-देवता हमेशा आसमान से आया करते थे. तेज रोशनी और बादलों की बात कही गई है. यानी क्या यह बातें इन तथ्यों को मजबूत करती हैं कि वे देवी-देवता एलियन ही थे जो पृथ्वी पर यात्रा करने के लिए आया करते थे? क्या हमारे प्राचीन काल में ही विमानों का निर्माण हो गया था जो एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक की यात्रा करा सकते थे. कहीं एलियंस ने ही तो अपनी ब्रह्माण्ड यात्रा के एक पड़ाव में हमें उन्नत विज्ञान का तोहफा दिया था?
मरुतसखा विमान. |
यूं तो हवाई जहाज कल्पना को सच करने का श्रेय अमेरिका के राइट बंधुओं को दिया जाता है. मगर भारत में राइट बंधुओं से करीब आठ बरस पहले महाराष्ट्र के शिवकर बापूजी तलपड़े जी ने धार्मिक ग्रंथों के आधार पर हवाई जहाज का निर्माण कर दिया था. उन्होंने अपने विमान को 'मरुतसखा' नाम दिया था. उन्होंने अपने हवाई जहाज में ईंधन के लिए 'पारा' का इस्तेमाल किया था. इस हवाई जहाज की उड़ान का प्रदर्शन बड़ौदा के राजा सर शिवाजी राव गायकवाड़ और लालजी नारायण के सामने किया गया था. मरुतसखा ने उस समय 1500 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरी थी. वहीं, राइट ब्रदर्स के हवाई जहाज ने मात्र 120 फीट की ऊंचाई तय की थी. तलपड़ेजी की पत्नी का निधन हो जाने पर उन्होंने अपने आविष्कार पर काम करना बंद कर दिया था. उनके इस ख्वाब को उनके एक शिष्य ने पूरा किया था. ऐसे में यह कहना पूर्णत: सही है कि हिंदू धर्म के देवी-देवता तकनीक के आधार पर विमान का निर्माण कर लिया था. अब ऐसे में वे वास्तव में देवी-देवता थे या कोई एलियन यह बड़ा ही रोचक सवाल है जिसका जवाब ही कभी मिले. इस आधार पर यह भी कह सकते हैं कि हमारे मंदिरों का निर्माण काफी हद तक एक उन्नत विमान की तरह किया गया है.
राइट बंधु की सफल उड़ान. |
वहीं, ईसाई धर्म में प्रभू यीशू के जन्म से लेकर उनके कुर्बानी देने तक के सफर के बारे में बार-बार यह कहा गया है कि आसमान से तेज रोशनी के साथ आकाशवाणी हुआ करती थी. वहीं, तेज प्रकाश के बीच आसमान से देवदूतों के आने की भी चर्चा की गई है. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि उस काल में भी आकाशीय मार्ग से हमारी पृथ्वी पर लोग आया करते थे. जो हमें जीने का सलीका सिखाना चाहते थे. वे हमारे समाज में समानता लाने का प्रयास कर रहे थे. वे हमें एक उन्नत जीवन देना चाहते थे. प्रभू यीशू ने भी हमें समानता और सामाजिक समसरता के साथ जीने की सलाह दी है.
माया सभ्यता की खंडहरों में मिली तस्वीर. |
वहीं, माया सभ्यता में बनाई गई इमारतों की तस्वीरों में देखा गया है कि एक इंसान किसी रॉकेट जैसी आकृति में सवार है. लंबे समय तक पर्यटकों ने इसे एक चित्र ही माना था मगर एक वैज्ञानिक ने इस तस्वीर को बारीकी से देखने के बाद यह निष्कर्ष निकाला था कि यह कोई रॉकेट या विमान सरीखा यंत्र है जिसमें एक इंसान सवार है. अब वह इंसान है या एलियन यह भी एक रोचक सवाल है. यहां यह बताने की आवश्यकता है कि माया सभ्यता अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता ग्वाटेमाला, मैक्सिको, होंडुरास तथा यूकाटन प्रायद्वीप में स्थापित थी. माया सभ्यता मैक्सिको की एक महत्वपूर्ण सभ्यता थी. इस सभ्यता का आरम्भ 1500 ईसा पूर्व में हुआ था. यह सभ्यता 300 ई. से 900 ई. के दौरान अपनी उन्नति के शिखर पर पहुंची इस सभ्यता के महत्वपूर्ण केन्द्र मैक्सिको, ग्वाटेमाला, होंडुरास एवं अल-सैल्वाड़ोर में थे. हालांकि, माया सभ्यता का अंत 16वीं शताब्दी में हुआ लेकिन इसका पतन 11वीं शताब्दी से आरम्भ हो गया था.
वहीं कई तथ्यों के आधार पर हम कह सकते हैं कि हमारी पृथ्वी पर आकाश की दूरी को तय करने के लिए विमानों का निर्माण सदियों पहले ही किया जा चुका था. मगर अब उनका नामोनिशां नहीं है. यहां एक सवाल यह भी है कि क्या हमारे पूर्वज इतने उन्नत दिमाग के लोग थे कि वे विमान जैसे जटिल यंत्र का निर्माण भी कर सकते थे और यदि उन्होंने विमान का निर्माण कर लिया था तो उन्हें विज्ञान की इतनी तगड़ी समझ कहां से मिली थी. क्या यह इस बात का सुबूत नहीं है कि वे किसी परग्रही के सम्पर्क में थे जो उन्हें विकास के नवीन मार्ग पर ले जा रहे थे. कहीं हम उन्हें ही तो आज के भगवान का दर्जा नहीं दे रहे हैं?
To Be Continued...
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हनुमान चालीसा में एक श्लोक है:-
जुग (युग) सहस्त्र जोजन (योजन) पर भानु |
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ||
अर्थात हनुमानजी ने
एक युग सहस्त्र योजन दूरी पर
स्थित भानु अर्थात सूर्य को
मीठा फल समझ के खा लिया था |
1 युग = 12000 वर्ष
1 सहस्त्र = 1000
1 योजन = 8 मील
युग x सहस्त्र x योजन = पर भानु
12000 x 1000 x 8 मील = 96000000 मील
1 मील = 1.6 किमी
96000000 x 1.6 = 1536000000 किमी
अर्थात हनुमान चालीसा के अनुसार
सूर्य पृथ्वी से 1536000000 किमी की दूरी पर है |
NASA के अनुसार भी सूर्य पृथ्वी से बिलकुल इतनी ही दूरी पर है|
हनुमान चालीसा में एक श्लोक है:-
जुग (युग) सहस्त्र जोजन (योजन) पर भानु |
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ||
अर्थात हनुमानजी ने
एक युग सहस्त्र योजन दूरी पर
स्थित भानु अर्थात सूर्य को
मीठा फल समझ के खा लिया था |
1 युग = 12000 वर्ष
1 सहस्त्र = 1000
1 योजन = 8 मील
युग x सहस्त्र x योजन = पर भानु
12000 x 1000 x 8 मील = 96000000 मील
1 मील = 1.6 किमी
96000000 x 1.6 = 1536000000 किमी
अर्थात हनुमान चालीसा के अनुसार
सूर्य पृथ्वी से 1536000000 किमी की दूरी पर है |
NASA के अनुसार भी सूर्य पृथ्वी से बिलकुल इतनी ही दूरी पर है|
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