बेमेल (Mismatch)

सुजॉय, जल्दी से अपनी टेबल पर रखी शर्मा एंड सन्स की फाइल देना. आज ऑफिस से घर लेट पहुंचा तो समझो पूरी रात सफाई देने में गुजर जाएगी. कभी-कभी साला समझ में नहीं आता कि अपने घर जाता हूं या किसी कचहरी में.
हमेशा किसी मुजरिम की तरह खुद की सफाई देता रहता हूं.
प्रखर की बात सुनकर सुजॉय हंस पड़ा. उसने अपनी टेबल पर फाइल तलाशते हुए कहा, ‘अमां यार यह कहानी तो घर-घर की है. मगर तुम्हीं बताओ कि यदि हम मर्दों पर ऐसी लगाम न लगी हो तो क्या हमें आवारा बनने से कोई रोक सकता है?'
उसने फाइल प्रखर को सौंपते हुए और अपनी जेब से मोबाइल निकालकर टाइम देखते हुए कहा कि बहुत जरूरी है कि हम पर इतनी सख्ती हो. यदि ऐसा नहीं होता तो हमारे बाप-दादाओं ने जिस तरह से कम संसाधनों में हमें पढ़ा-लिखा दिया है, वैसा कभी न हो पाता. हर मर्द अय्याशी करना चाहता है. उसे समय के बंधनों में बंधकर रहना कभी गंवारा नहीं है. वह अपनी पैदायशी के समय से ही खुद को आजाद मान लेता है. उसे हमेशा ही घर का आंगन जेल और घर के कायदे-कानून फांसी लगते रहते हैं. बस, सामाजिक बंधन ही उसे इंसान बना सकता है. यदि ऐसा नहीं है तो तुम्हीं बताओ कि आखिर मर्दों को ही हर बार अपना अवसाद खत्म करने के लिए घुमक्कड़ी की जरूरत पड़ती है? शाम होते ही उसे दो पेग के नाम पर बार में ठहरने की क्या आफत रहती है? दोस्तों से मिलने के लिए वह चौराहे पर ही क्यों अक्सर रूक जाता है?
उधर, प्रखर सिर नीचे झुकाए मुस्कुरा रहा था. वह सुजॉय को जवाब तो देना चाहता था लेकिन कुछ बोल नहीं रहा था. हालांकि, प्रखर मन में बुदबुदा जरूर रहा था कि जरा सा मैंने बोल क्या दिया महाराज खुद को काबिल बनाने लगे. साथ ही, उसे इसका भी पता था कि सुजॉय की बात तो सही है.
इसीलिए उसने अपनी मौन स्वीकृति देते हुए इस बहस को बढ़ाना उचित नहीं समझा. अब चूंकि दोनों ही अपने विभाग में ऊंचे ओहदे पर थे, ऐसे में उन्हें अलग ही कैबिन मिला हुआ था. हालांकि, उन दोनों की टेबल आस-पास ही थी. वह आपस चर्चा करते हुए ही ऑफिस के सभी लोगों पर नजर रखते थे और काम का निपटारा कर दिया करते थे. यही कारण था कि धरती की सबसे बड़ी समस्या पर विचार बरसाने के लिए कोई भी आस-पास मौजूद नहीं था.
इस बीच घड़ी की सुईयां योगाभ्यास करते हुए पांच बजने का ईशारा कर रही थीं. प्रखर ने भी मुस्तैदी से काम खत्म करते हुए फाइल को किनारे कर सुजॉय से मुखातिब होकर कहा, ‘...तो जनाब को महिला मर्म विशेषज्ञ बनने की सूझ रही है. दोस्त का दर्द दिख नहीं रहा और दुनिया का सारा ज्ञान नजर आ रहा है.‘ उसने अपनी ऑफिस चेयर पर बैठे-बैठे ही अंगड़ाई लेते हुए कहा कि यार, मैं अपनी पत्नी का कोई दुश्मन तो हूं नहीं. मैंने तो हमेशा ही उसमें एक दोस्त की तलाश की है. अब वह पत्नी और मेरे बच्चे की मां ही बने रहना चाहती है तो मैं क्या करूं. ऐसा तो नहीं है कि मैंने कभी भी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह फेरा है. घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए ही अपने मनचाही तरक्की देने वाली जॉब छोड़ दी. क्या मुझे इतनी ही आजादी पसंद होती तो मैं दूसरे शहर में जाकर अपने मुताबिक नहीं रहता? वहां पर तो मुझे किसी को भी जवाब नहीं देना होता. जब जो चाहता करता. यदि बेगम का फोन भी आता तो जो चाहता कह देता. उसके लिए तो वही सच होता जो मैं कहता लेकिन मैं आवारगी में जीना को जिंदगी नहीं मानता. बस, अपनी लेटलतीफी के लिए रोज सफाई देना और अंत में मुंह फुलाकर सो जाना मुझे पसंद नहीं. मैंने जिस तरह से अपनी मर्जी कभी किसी पर नहीं थोपी वैसे ही मुझ पर कोई अपनी मर्जी का लिहाफ ओढ़ा दे, कत्तई मंजूर नहीं. बस, घर की षांति को बनाए रखने के लिए कभी कुछ नहीं कहता. बीवी कितना ही नाराज हो जाए उससे हंसकर पेश आ जाता हूं. हां, जब बात ज्यादा बढ़ने लगे या मेरा स्वाभिमान जाग जाए तो अपने बचाव के लिए बहस करना ही मुनासिब समझता हूं.
प्रखर, की यह बात सुनकर सुजॉय कुछ देर खामोश रहा. इस दौरान सुजॉय और प्रखर को पता ही नहीं चला कि गुरमीत सिंह जो लखनऊ यूनिट के हेड थे, उन दोनों की कॉमन कैबिन के दरवाजे पर खड़े सब सुन रहे थे. उन्होंने दोनों की इस महाचर्चा में आई चुप्पी को तोड़ते हुए कहा कि मुझे तो मालूम ही नहीं था कि हमारी फाइनेंस कम्पनी में इतना ज्ञान रखने वाले दो षूरवीर भी हैं. मैं तुम दोनों की बातें सुन रहा था. मुझे तुम दोनों की बातें अपनी-अपनी जगह सही लगीं. फिर भी मैं इस टॉपिक पर अपनी राय रखना चाहता हूं. मगर सबसे पहले मुझे शर्मा एंड सन्स की फाइल चाहिए. काम पहले है यारा ते बातचीत का दौर होगा.
प्रखर ने अपने हरदिलअजीज बॉस की बात सुनते ही फौरन फाइल उन्हें दे दी. गुरमीत ने भी पूरी फाइल पर नजर दौड़ाने के बाद कहा कि फाइल तो ठीक है बंदे को अपना धंधा बढ़ाने के लिए लोन दे देना चाहिए. सुजॉय, इस फाइल को अकाउंट्स डिपार्टमेंट में भेज दो. महीना खत्म होने वाला है. टार्गेट पूरा करने का भी दबाव है. इसके जवाब में दोनों ने हामी भरते हुए फाइल को अपने पास ले लिया.
इसके गुरमीत ने कहना शुरू किया, ‘सुजॉय और प्रखर तुम दोनों ही हमारे यहां के काबिल लोगों में गिने जाते हो. तुम दोनों का व्यवहार भी एक-दूसरे से काफी हद तक मिलता है. अब एक तरह का मिजाज रखने वाले हमेशा ही एक तरह विचार भी रखें ऐसा जरूरी तो नहीं है.‘
उन्होंने प्रखर की ओर चेहरा करते हुए कहा कि पुत्तर मर्द को परिवार का बोझ उठाने के लिए अपना मन मारना ही पड़ता है लेकिन हमसे कहीं ज्यादा औरतों को अपनी ख्वाहिषों की कुर्बानी देनी पड़ती है. ऐसा कभी मत सझना कि गृहस्थी को सफल बना देना सिर्फ मर्द के बस का है. यह मियां-बीवी की साझा कुर्बानी के बिना संभव ही नहीं है. बेहतर होगा कि अपनी पत्नी की मर्जी को समझो. यदि तुम उसमें अपनी दोस्त की तलाश कर रहे तो पहले तुम खुद में उसके लिए उसके मन भाने वाले पति को जगह दो. जिस दिन मेरी बहू को उसका पति वैसा ही दिखने लगेगा जैसा वह चाहती थी तो देख लेना उसके बाद तुम्हें भी उसमें एक दोस्त दिखने लगेगी.
इसके बाद उन्होंने सुजॉय की तरह चेहरा कर लिया. उधर, प्रखर विचारों में डूब गया.
इधर, गुरमीतजी ने सुजॉय से कहा कि बेटा बातें सब अच्छी होती हैं. कोई कहता है कि इंसान अपनी सूझबूझ से रेगिस्तान में भी फूल खिला सकता है. मगर मुझे यह बता पुत्तर वह इसके लिए अच्छा माहौल कैसे बनाएगा. वहां रेत के नीचे भी जमीन होनी जरूरी है. इसीलिए आज भी लोग कभी लव तो कभी अरेंज मैरिज को सफल कहते रहते हैं. कोई शादी के लिए मर्द-औरत में पहले से प्यार होना जरूरी समझता है तो कोई मानता है कि पहले ही प्यार हो जाने से शादी के बाद सम्मान नहीं रहता है. यही कारण है कि दुनिया में बेमेल वाले जोड़े भरे पड़े हैं.
सभी अपनी जिंदगी को जन्नत बनाना चाहते हैं लेकिन किसी को इसका तरीका नहीं पता. मुझे भी नहीं पता. इसीलिए मैं और मेरी बीवी आज भी सप्ताह में चार दिन किसी न किसी बात पर मुंह फुलाए रहते हैं.
उन्होंने थोड़ी देर की चुप्पी लेने के बाद कहा कि दरअसल आज भी हम शादी-ब्याह के फैसलों में परिपक्व नहीं हो सके हैं. आज भी हम लड़का-लड़की की कुंडली तो मिला लेते हैं. राशि और पुकार के नाम से उसे मिलवा भी देते हैं. लेकिन, कभी भी दोनों की सीरत का मिलान नहीं करते. दोनों का मिजाज एक नजर से नहीं देखते. विपरीत विचार वालों की शादी कर देते हैं. काश! हम शादी तय करने के तरीकों को बदल दें. कुंडली नहीं सीरत का मिलान करना सीख जाएं तो ऐसी दिक्कतों का अंत हो जाए. यह जो शब्द है न ‘मिसमैच या बेमेल‘ इसकी जगह ही नहीं रहे. जो जिस विचार का हो उसे वैसा ही जीवनसाथी मिल जाएगा. सारा बवाल ही खत्म हो जाएगा.
इतना कहने के बाद तीनों ने जोर की सांस लेते हुए अपनी हामी भरी. फिर ऑफिस की 5 बजकर 37 मिनट बजा रही घड़ी को देखते हुए कहा कि चलो घर चलें. रास्ते से सब्जी भी लेनी है. अगर थोड़ा भी देर कर गए तो घर पर सुनवाई करने के लिए कोई वकील नहीं मिलेगा. तीनों ठहाके लगाते हैं और अपना-अपना बैग संभालने लगते हैं....उन्हें मालूम है कि रिश्ता भले ही ही बेमेल हो लेकिन इसे मेल में लाने की कोशिश तो करनी ही होगी क्योंकि उनकी पत्नियां भी यही प्रयास लंबे समय से करती आ रही हैं...

Comments

Dhiraj Tiwari said…
Bahut Badhiya aise hi lage raho
Unknown said…
Very good , keep it up.
Neeraj Express said…
Thanx... Unknown reader dost.
Robbie bhardwaj said…
नीरज भाई ऐसे ही लिखते रहो।
शानदार कहानी...बेहतरीन।J
Neeraj Express said…
आप सभी का आभार...