ग्यारह साल की अंशु अपने हमउम्र दोस्तों के साथ मिलकर चाइल्ड ट्रैफिकिंग से बचपन को बचाने वाला सॉफ्टवेयर बना रही है. वह कक्षा छह में पढ़ती है. हर रविवार को गुड़गांव में रहने वाले ये बच्चे तकनीक की दुनिया में एक नया कदम उठा रहे हैं. ये चाइल्ड ट्रैफिकिंग से बच्चों को बचाने के लिए ब्लॉकचेन बना रहे हैं.
बातचीत के दौरान अंशु के पिता अंजनी कुमार (41 वर्ष) बताते हैं कि करीब दो साल पहले इसकी शुरुआत हुई थी. बच्चों को मोबाइल एप्प, सॉफ्टवेयर्स और कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के तमाम लैंग्वेज की जानकारी देने का उन्होंने फैसला किया था. इसकी शुरुआत उन्होंने घर से ही की थी. अंजनी कहते हैं कि देखते ही उनकी नौ साल की बेटी अंशु ने कंप्यूटर की हर बारीकी को समझना शुरू कर दिया. कुछ ही महीने के बाद वह मोबाइल एप्प भी बनाना सीख गई. उसकी देखादेखी घर के और दोनों बच्चों ने भी तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना शुरू कर दिया. वे अपने खेलकूद के समय में कटौती कर कंप्यूटर के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर्स से खेलने लगे. नतीजा यह हुआ कि मात्र जानकारी देने से शुरू होने वाला यह सफर एक मुहिम बन गई. देखते ही देखते उनके पड़ोसियों के बच्चे भी तकनीक की यात्रा में शामिल हो गए.
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आज अंशु के साथ ही सान्या (9), खुशी (6), सुची कुमारी (11) और अरव (8) सहित कई बच्चे इतनी कम उम्र में वेबसाइट डेवलपिंग सहित जटिल मोबाइल एप्प बनाने का हुनर भी सीख गए हैं.
मगर इस तकनीकी सफर में एक समय के बाद नया बदलाव आया. बच्चों के गुम हो जाने या अगवा हो जाने के बाद उनको तलाशने में आसानी हो इस पर चर्चा शुरू हो गई. तब इन्हीं बच्चों ने अंशु के पिता अंजनी की पहल पर ब्लॉकचेन पर काम करना शुरू कर दिया. इस कारवां में इन बच्चों ने नित नया आयाम बनाना शुरू कर दिया. अब वे अपनी मंजिल के बहुत ही करीब आ चुके हैं. कुछ ही दिनों में उनका यह ब्लॉकचेन देश-दुनिया में चाइल्ड ट्रैफिकिंग की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए एक सहारा बनने वाला है. इस बाबत लॉन टेनिस खेलने की शौकीन अंशु बताती हैं कि उन्हें इस एक्स्ट्रा एक्टिविटी से कोई दिक्कत नहीं होती है. वह अपनी पढ़ाई, खेलकूद और जूडो प्रैक्टिस करने के दौरान ही इन सबके लिए वक़्त निकाल लेती हैं.
वहीं, इस बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए अंजनी कहते हैं कि अब उन्होंने इस तकनीक के ज्ञान वाले सफर में अन्य प्रदेश के स्कूलों को भी जोड़ लिया है. वे सरकारी और गैरसरकारी दोनों तरह के स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को सॉफ्टवेयर बनाने की जानकारी दे रहे हैं. वे यह सारा काम मुफ्त में करते हैं. और तो और उन्हें इस बात को कहते हुए काफी हर्ष होता है कि नन्हे हाथों से बने एप्प और साइट को देखना उनके लिए किसी पुरस्कार को हासिल करने से कम नहीं है.
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