रिश्‍ते का गाढ़ापन...


रिश्‍तों की महत्‍ता उसकी पीड़ा में है। दर्द जितना ज्‍यादा हो, समझो रिश्‍ते में प्रेम उतना ही गाढ़ा है। किसी को खोने का डर हमेशा ही मन में कोलाहल सा ला देता है। यूं भी इन दिनों मन कुछ उदास सा रहता है। सोचता हूं, इतना दर्द तो कभी मन में ठहराया ही नहीं था तो आखिर ये मेरे हृदय में समाया कब? पापा की तबीयत ने मुझे कुछ डरा सा दिया है। पहले उनके टोकने से चिढ़ होती थी और अब उनकी खामोशी ने बेचैन कर दिया है। आजकल, पापा मुझसे कुछ कहते भी नहीं। मुझे विश्‍वास ही नहीं हुआ कि आज जब दोपहर में दुकान बंद करके खाना खाने घर पहुंचा तो उन्‍होंने घर में मेरे आते ही टीवी का रिमोर्ट मुझे थमा दिया। न बिक्री के बारे में कुछ पूछा और न ही कोई सलाह दी, जिससे मुझे चिढ़ रहती है। उनका यह बदला हुआ चरित्र मन में सैकड़ों सवाल खड़े कर रहा है। हर पल मुझे डरा रहा है। इस बीच बिहार में अपने पैतृक गांव जाने की बातें करना और हरिद्वार में दीदी-जीजा के घर हो लेने की इच्‍छा जताना, मुझे आशंका से भर दे रहा है। मोबाइल पर घर का नंबर दिखते ही मन कांप जाता है। शुक्र है, लबली सिर्फ खाने में क्‍या बनाना है, यही पूछती है। रात को सोते समय ऐसा लगता है कि मम्‍मी-पापा दोनों ही दरवाजा खटखटा रहे हैं। बीते दो-तीन रातों से आंख लगते ही कुछ ऐसा ही भ्रम मुझे जगा देता है। रात के सन्‍नाटे में छत पर टहलने लगा हूं, पापा को खोने का डर मेरी सारी इच्‍छाशक्‍ति को तोड़ दे रहा है। लेकिन, मैं इस बात को अच्‍छी तरह जानता हूं कि पापा ने जीवन में कभी किसी को खुद से जीतने नहीं दिया। अब उनकी बारी अपनी इस बीमारी को हराने की है और मुझे पूरा यकीन है कि वह ऐसा कर दिखाएंगे...

Comments

Unknown said…
So nice short story....