हवाई ख़िदमत

तस्‍वीर काल्‍पनिक है...गूगल इमेज का साभार है।

यह कहानी सत्‍य घटना पर आधारित है. दरअसल, यह मेरे पड़ोस की ही घटना है. सलीम (काल्‍पनिक नाम) पेशे से कसाई है. वह लोगों को मटन और चिकन काट कर मुहैया कराता है. लोगों को सलीम की काटी गईं बोटियों का साइज हमेशा ही पसंद है. सलीम भी सबके स्‍वाद और पसंद को जान चुका है. वह अपने ग्राहकों को दूर से देखते ही उनके मुताबिक, मांस काटने की तैयारी शुरू कर देता है. यही कारण है कि उसका यह पेशा मेरे बचपन से लेकर जवानी तक लगातार गुलजार रफ्तार से चल रहा है.
हालांकि, मुझे सलीम और उसके यहां काम करने वाले दो नौकरों की एक आदत हमेशा ही कचोटती रहती थी. और वह आदत यह थी कि वह दिन में एक बार धंधे की शुरुआत के समय अपने बकरे को दुकान से कुछ दूरी पर बने पशुशाला से पैदल ही लेकर चलता है. यदि सलीम नहीं तो उसके यहां काम करने वाले दोनों नौकर भी यही करते हैं लेकिन उसके बाद वह दिनभर अपनी बाइक से तेज रफ्तार में अपने बकरों को बांधकर दुकान पहुचाता है. पहले मैंने इस बात को यह सोचकर दरकिनार कर दिया कि हो सकता है कि सुबह के समय धूप कम रहती है इसीलिए वह पैदल ही चला जाता होगा. खैर, रोजमर्रा की जिंदगी में इतना बारीकी से देखना भी किसी गुनाह से कम नहीं है. हालांकि, मेरी इस बात को लेकर दिलचस्‍पी हमेशा ही बनी रही.
जो भी हो, किसी बात का खुलासा तभी होता है जब उसका समय आ जाता है. मुझे भी मेरे सवाल का जवाब मिल गया. काफी कुरेदने पर सलीम की दुकान के बगल में बरसों से दर्जी का काम कर रहे (राम सिंह) ने बताया कि सलीम जब भी पैदल ही अपना पशु लेकर दुकान आता है तो वह बकरा होता है और जब भी वह गाड़ी से आता है तो बकरी. मैं सलीम को और उसकी अपने ग्राहकों के प्रति दिखाने वाली 'हवाई ख़िदमत' के बारे में ही सोचता रह गया. सच है, हम जो सोचते हैं वैसा कभी होता नहीं है. इस छोटी कहानी का भी कुछ यही कहना है. यानी जो दिखे उसे हमेशा हक़ीक़त समझने की भूल नहीं करनी चाहिए. 

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