लखनऊ में सबसे पहले चश्‍मा पहनने वाला शख्‍स 'ऐनकबाज' के नाम से हुआ था मशहूर

आइए जानें लखनऊ का विशाल इतिहास। हर रोज। थोड़ा-थोड़ा...
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गोमती नदी का पहला पुल जो नवाबी शासन काल में राजा नवलराय की निगरानी में बनवाया गया था वह शाही पुल गोमती पर से जाने कब का गयाब हो चुका है। लखनऊ की पहली शानदार बाजारें कैप्‍टन बाजार और चाइना बाजार थी जो अब कहीं ढूंढे नहीं मिलती। अंग्रेजी दौर में इस शहर का पहला चायखाना मीर मुहम्‍मद हुसैन साहब ने खोला था लेकिन लखनऊ वाले शायद इस शै (चीज) को तब मुंह नहीं लगाते थे इसलिये वह चायखाना चल नहीं सका। हमारे शहर में पहली-पहली डबलरोटी की दुकान नवाब आगा अली हसन खां ने घसियारी मण्‍डी में खोली गई थह। हालांकि, डबलरोटी अब पूरे शहर में मिलती है मगर वह दुकान अब कहीं नहीं दिखती। कूच-ए-मीर जान के नवाबजादे और उनका फोटो स्‍टूडियो भी लापता हो चुका है। लखनऊ की पहली रंगशाला 'दिलाराम की बारादरी' कही जा सकती है जो चौपटिया के करीब थी लेकिन अब उसका कोई पता नहीं है। लखनऊ का पहला टाउनहाल राजाबाजार में राजा टिकैतराय का दीवानखाना था लेकिन अब वह नाम गुम हो चुका है। ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेजों ने हजरतगंज में रिंगथियेटर बनवाया जो इस शहर का पहला सिनेमा हॉल था। वह भी अब बाकी नहीं है और आज उसी की जमीन पर जीपीओ की इमारत खड़ी है। गोलागंज का 'तमाशाघर' जहां कभी आगा हश्र कश्‍मीरी के मशहूर ड्रामा हुआ करता था। हालांकि, अब उसका भी कोई नाम-ओ-निशां तक नहीं बचा है। अब तो उस जगह बुलंदबाग की बस्‍ती आबाद है।
मजे की बात तो यह हैकि बादशाह गाजीउद्दीन हैदर के अहद (शासनकाल) में लखनऊ शहर में जिस शख्‍स ने सबसे पहले ऐनक (चश्‍मा) पहनी थी उसे 'ऐनकबाज' कहकर पुकारा गया था। उस ऐनकबाज की कोठी बड़ी मशहूर थी। यह अजब इत्‍तफाक है कि ऐनकबाज की वह कोठी ठीक इसी जगह थी जहां अब हिंदी संस्‍थान का भवन है।
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(पुस्‍तक साभार: आपका लखनऊ, लेखक: )
#लिखने_की_बीमारी_है।।।।। 

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