ईमानदारी की जिद में बदनाम रहा।
उसे गैरों से कभी उम्मीद ही न की
वो तो अपनों में भी सिर्फ नाम रहा।
कहने को तो उसके दोस्त बहुत थे
फिर भी मरते दम तक गुमनाम रहा।
कंपकंपाती हंसी और नम आंखें लिये
ताउम्र अकेली शाम का वो जाम रहा।
कहते हैं शब्दों का फनकार था वो
तब भी जीवन भर वो बेजुबान रहा।
पूछो तो उसके अजीज बस कहते हैं
नजाने हुनरमंद हो क्यूं अंजान रहा।
कुछ खास होकर भी वो आम रहा
ईमानदारी की जिद में बदनाम रहा।
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#लिखने_की_बीमारी_है।।।।।
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