खनन ने बढ़ाया खेती का खर्च, बुआई से पहले उपजाऊ मिट्टी खरीदने को मजबूर हैं किसान

“पहले खेती में खाद-पानी की समस्या हुआ करती थी। मगर खनन ने हमारी दिक्कत बढ़ा दी है। मेरे खेत की उपजाऊ मिट्टी बरसात में बहर खनन वाले तालाब में समा गई है। ऐसे में खेती से पहले हम लोगों को उपजाऊ मिट्टी खरीदने के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ रही है।” सत्तावन वर्षीय हरकिशन रावत कुछ यूं अपना दर्द बयां करते हैं।

दरअसल, राजधानी के सरोजनीनगर ब्लॉक के नटकुर गाँव में मिट्टी के अवैध खनन की समस्या काफी समय से बरकरार है। ग्राम समाज की जमीन पर अंधाधुन तरीके से किए जा रहे खनन का खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। खनन की वजह से तालाब में तब्दील हुए मैदानों में उसके आस-पास के खेतों की उपजाऊ मिट्टी बरसात में बह जाती है। ऐसे में इस क्षेत्र के कृषक खेती से पहले अपनी खेतों में माटी खरीदने को मजबूर हैं।

इस बारे में हरकिशन बताते हैं, “मेरे खेत के करीब में ही ग्राम समाज की जमीन है। इस जमीन पर सुबह-शाम मनमाने तरीके से अवैध खनन का काम किया जा रहा है। चूंकि, इस काम में दबंग लोग जुड़े रहते हैं, ऐसे में विरोध भी नहीं कर पाते हैं। मगर बरसात के समय मेरे और मेरे जैसे अन्य किसानों की खेतों की मिट्टी इसमें बहकर समा जाती है।” वे अपनी बात पूरी करते हुए कहते हैं, “ऐसे में हमें खेती करने से पहले अपनी खेतों में दूसरी जगहों से मिट्टी लाकर ऊपरी परत तैयार करनी पड़ती है। जाहिर है, हमारे लिए खेती का खर्च अब और बढ़ गया है। खाद-पानी के लिए रुपए जुटाने के साथ ही अब मिट्टी के लिए भी रुपए जुटाना पड़ रहा है।”

वहीं, इस बारे में सुभाष गौतम (37 वर्ष) नाम के किसान बताते हैं, “अवैध खनन का विरोध करने पर हम लोगों की कोई सुनता नहीं है। ऊपर से दबंगों की धमकी के चलते हम भी कुछ दिनों के बाद बोलना बंद कर देते हैं। रात में बेतरतीब तरीके से किया जाने वाला अवैध खनन दिन में भी बदस्तूर जारी रहता है।”

उधर, अवैध खनन के ही शिकार हुए छोटे कृषक रामकृपाल कुशवाहा (43 वर्ष) बताते हैं, “मेरा खेत मुल्लाहीखेड़ा गाँव में है। मेरे खेत के चारों ओर बाग है। ऐसे में रात में वहां ठहरना उचित नहीं होता है। करीब दो महीने पहले मेरी खेत में से रातोंरात कई ट्राली मिट्टी चुरा ली गई। मुझे दिन में इसकी जानकारी लगी।” वे कहते हैं, “मेरे खेत में अब एक बड़ा सा गड्ढा बन गया है। उसमें दोबारा खेती करने के लिए मुझे मिट्टी खरीदनी पड़ेगी लेकिन मेरे पास उतने रुपए भी नहीं हैं। कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं।”

इस बारे में नाम न छापने की शर्त पर खनन से जुड़े एक मजदूर ने बताया, “हर थाने में मिट्टी खोदाई का रुपया भेजा जाता है। दिन में डंफर से मिट्टी ढोना मना है मगर रात में दस बजे के बाद से सुबह उजाला होने से पहले तक जितनी चाहे उतनी मिट्टी की खोदाई की जा सकती है।”

वे आगे बताते हैं, “हम लोग रातभर मिट्टी खोदकर लोगों को बेचते हैं। इस बीच एक थाने को चार से पांच हजार रुपए देने होते हैं जबकि मिट्टी की सप्लाई यदि किसी दूसरे थाने के क्षेत्र में करनी पड़ती है तो वह ढाई से तीन हजार रुपए लेता है। एक बार रुपया दे देने के बाद किसी भी चौराहे पर पुलिस गाड़ी नहीं राकती है।”

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