सुकून की चाह में हम तरसते रहे

सुकून की चाह में हम तरसते रहे
हम तरसते रहे और वो गरजते रहे

सुनहरी शाम में याद उनकी आ गई
देखते ही देखते रात हमें खा गई

आज किसी नाम पर खुद को मैं वार दूं
खुद को भुला के उसकी जिंदगी संवार दूं

मेरी नब्‍ज है थमी और ख्‍वाब में जगा हूं मैं
फिर भी मेरा दिल कहे कि जिंदगी उधार दूं

ए खुदा बता मुझे कि क्‍या खता है हो गई
कि देखते ही देखते फिर सुबह हो गई।




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