आजकल सोशल मीडिया में एक मैसेज वायरल हो चला है कि सोनम गुप्ता बेवफा है। लोग नोटबंदी के इस दौर में जब बैंकों और एटीएम के बाहर लाइन लगाने को मज़बूर हैं तो इस वायरल मैसेज ने सभी को गुदगुदाया है। मगर लोगों के इस मसखरेपन से आरबीआई को कितना घाटा होता है, इसका पता चलते ही आप ऐसा करना उचित नहीं कहेंगे। एक रिपोर्ट के मुताबिक, आरबीआई करीब हर वित्तीय वर्ष में देश की कुल मुद्रा संख्या का बड़ा हिस्सा दोबारा छापता है, जिसका खर्च करोड़ों में होता है। यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर अतिरिक्त बोझ है।
आरबीआई की ओर से जारी किए गए गाइडलाइन में हमेशा ही देशवासियों को इस बात के लिए प्रेरित किया जाता है कि वे देश की मुद्रा को गंदा न करें। उस पर कुछ न लिखें। उसे न तो तोड़-मरोड़कर रखें और न ही फटने दें। मगर लोग नोट को गलत तरीके से इस्तेमाल करते हैं। जब मन चाहता है उस पर कुछ लिख देते हैं। मानकों के विपरीत जाकर उसे ऐसे रखते हैं कि वह फटने की कगार पर पहुंच जाता है। यहां तक कि कुछ दिनों के बाद ही वह गलने लगता है।
कुछ समय के बाद वे नोट बैँकों में पहुंचते हैं तो उनके बदले धारक को नई करेंसी दे दी जाती है। फिर आरबीआई की ओर से नई करेंसी की छपाई की जाती है। इसके लिए बाकायदा टेंडर तक निकाले जाते हैं। ऐसे में देश की अर्थव्यस्था पर बहुत बड़ा बोझ पड़ता है। नोटों की यह छपाई आरबीआई के लिए बड़ा खर्च बन जाती है। इस कारण देश की मुद्रा का एक अच्छा-खासा हिस्सा करेंसी की छपाई पर खर्च करना पड़ता है।
वर्तमान में देश में दस की सर्वाधिक करेंसी देश में चल रही हैं। इनकी संख्या करीब 32 हजार लाख है। वहीं, 500 और 1000 की नोटों की संख्या करीब 15 हजार लाख व सात हजार लाख है। वहीं, दस रुपए की एक नोट को छापने में आरबीआई को एक रुपए, 500 रुपए के नोट पर 2.5 रुपए और 1000 की नोट छपाई के लिए 3.2 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। यह आंकड़ा वर्ष 2012 में रुपए की छपाई में आए खर्च के संदर्भ में बताया गया था। वहीं, 2000 की नोट को छापने में उतना ही खर्च आता है जितना कि एक हजार रुपए की नोट में लगता है।
वर्ष 2015 में सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हो गया था कि आरबीआई ने एक जवरी 2016 से कटे-फटे और लिखापढ़ी किए गए नोटों को स्वीकार करना बंद कर दिया है। लोगों ने ऐसी करेंसी को बाजार से बाहर किया जाना मान लिया था। तब तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने एक मीडिया में यह बयान दिया था कि आरबीआई हर तरह के नोट को स्वीकार करने के लिए प्रतिबद्ध है। लोग कटे-फटे और लिखापढ़ी किए गए नोटों को बाजार से बाहर किए जाने वाले मैसेज को नकार दें। हालांकि, उन्होंने यह भी जरूर कहा था, “यदि कोई शख्स बैंक कर्मचारी के सामने ही नोट पर कुछ लिखता है तो बैंक उस नोट को स्वीकार नहीं करेगा।” इसका कारण बताते हुए उन्होंने स्वीकार किया था कि नोटों की छपाई में देश को काफी खर्च उठाना पड़ता है। हालांकि, आम नागरिकों को नोटों की छपाई के इस खर्च को वहन नहीं करना पड़ता है। इसीलिए लोग करेंसी की कद्र नहीं करते हैं और उस पर अपनी मनमर्जी करते रहते हैं। इस संबंध में आरबीआई के डिप्टी गवर्नर केसी चक्रबर्ती ने हाल में बयान दिया है, “रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की ओर से आए दिन इस बात की जानकारी जारी की जाती है कि लोग करेंसी को किसी भी हाल साफ-सुथरा रखें मगर लोग इसे मानते नहीं। जो गलत है।”
... तो नहीं मानते आरबीआई की गाइडलाइन
आरबीआई की ओर से जारी किए गए गाइडलाइन में हमेशा ही देशवासियों को इस बात के लिए प्रेरित किया जाता है कि वे देश की मुद्रा को गंदा न करें। उस पर कुछ न लिखें। उसे न तो तोड़-मरोड़कर रखें और न ही फटने दें। मगर लोग नोट को गलत तरीके से इस्तेमाल करते हैं। जब मन चाहता है उस पर कुछ लिख देते हैं। मानकों के विपरीत जाकर उसे ऐसे रखते हैं कि वह फटने की कगार पर पहुंच जाता है। यहां तक कि कुछ दिनों के बाद ही वह गलने लगता है।कुछ समय के बाद वे नोट बैँकों में पहुंचते हैं तो उनके बदले धारक को नई करेंसी दे दी जाती है। फिर आरबीआई की ओर से नई करेंसी की छपाई की जाती है। इसके लिए बाकायदा टेंडर तक निकाले जाते हैं। ऐसे में देश की अर्थव्यस्था पर बहुत बड़ा बोझ पड़ता है। नोटों की यह छपाई आरबीआई के लिए बड़ा खर्च बन जाती है। इस कारण देश की मुद्रा का एक अच्छा-खासा हिस्सा करेंसी की छपाई पर खर्च करना पड़ता है।
2000 और 1000 की नोट का छपाई खर्च बराबर
वर्तमान में देश में दस की सर्वाधिक करेंसी देश में चल रही हैं। इनकी संख्या करीब 32 हजार लाख है। वहीं, 500 और 1000 की नोटों की संख्या करीब 15 हजार लाख व सात हजार लाख है। वहीं, दस रुपए की एक नोट को छापने में आरबीआई को एक रुपए, 500 रुपए के नोट पर 2.5 रुपए और 1000 की नोट छपाई के लिए 3.2 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। यह आंकड़ा वर्ष 2012 में रुपए की छपाई में आए खर्च के संदर्भ में बताया गया था। वहीं, 2000 की नोट को छापने में उतना ही खर्च आता है जितना कि एक हजार रुपए की नोट में लगता है।वर्ष 2015 में सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हो गया था कि आरबीआई ने एक जवरी 2016 से कटे-फटे और लिखापढ़ी किए गए नोटों को स्वीकार करना बंद कर दिया है। लोगों ने ऐसी करेंसी को बाजार से बाहर किया जाना मान लिया था। तब तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने एक मीडिया में यह बयान दिया था कि आरबीआई हर तरह के नोट को स्वीकार करने के लिए प्रतिबद्ध है। लोग कटे-फटे और लिखापढ़ी किए गए नोटों को बाजार से बाहर किए जाने वाले मैसेज को नकार दें। हालांकि, उन्होंने यह भी जरूर कहा था, “यदि कोई शख्स बैंक कर्मचारी के सामने ही नोट पर कुछ लिखता है तो बैंक उस नोट को स्वीकार नहीं करेगा।” इसका कारण बताते हुए उन्होंने स्वीकार किया था कि नोटों की छपाई में देश को काफी खर्च उठाना पड़ता है। हालांकि, आम नागरिकों को नोटों की छपाई के इस खर्च को वहन नहीं करना पड़ता है। इसीलिए लोग करेंसी की कद्र नहीं करते हैं और उस पर अपनी मनमर्जी करते रहते हैं। इस संबंध में आरबीआई के डिप्टी गवर्नर केसी चक्रबर्ती ने हाल में बयान दिया है, “रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की ओर से आए दिन इस बात की जानकारी जारी की जाती है कि लोग करेंसी को किसी भी हाल साफ-सुथरा रखें मगर लोग इसे मानते नहीं। जो गलत है।”
जानें क्या कहती है आरबीआई की क्लीन नोट पॉलिसी
- कोई भी बैंक में न तो नोटों को स्टैपल करेगा और न ही बैंक स्टैपल करके नोट मुद्रा धारक को सौंपेगा।
- बैंक नोटों का बंडल धारक को सौंपते समय एक ऐसे पैकेट में देगा जिसमें नोट कहीं से मुड़े या दबे नहीं।
- नोटों की गिनती के बाद उस पर कुछ भी लिखना सख्त मना है।
- धारक को दिया जाने वाला कैश पूरी तरह से साफ-सुथरा हो। उसमें कोई कटा-फटा या गंदा न हो।
- किसी भी बैंक को नोट के ऊपर वाटरमार्क या मुहर लगाने से भी मना किया गया है।
- नोट यदि पचास प्रतिशत तक भी फटा होगा तब भी आरबीआई को उसे स्वीकार करना होगा। इसके बदले में धारक को नई देनी होगी।
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