ये
देश जितना तुम्हारा है उतना
मेरा भी है हुजूर
न
जाने कब तुझसे छिन जाए ये सत्ता
का गुरूर।
अस्तित्व को बचाने की जुगत करते जेएनयूवाइट्स फोटो क्रेडिट: गूगल इमेज |
इसमें
कोई शक नहीं है कि केंद्र में
सत्ता परिवर्तन होने के बाद
विश्वस्तर पर हमारे देश का
नाम रोशन हुआ है। मगर अपने देश
में अचानक ही ‘राष्ट्रद्रोहियों’
की संख्या बड़ी तेजी से बढ़
गई है। बयानों की मानें तो यह
संख्या दिन-प्रतिदिन
बहुत ही चिंताजनक रफ्तार में
बढ़ती ही जा रही है। आलम यह है
कि हर गली में भगवाधारी देशभक्त
होने का प्रमाणपत्र जारी कर
रहे हैं। चारों ओर हिंदुत्व
को छोड़ अन्य विचारधारा को
मानने वालों को संकीर्णता की
नजर से देखने वालों की पौबारह
हो रही है। कोई किसी को भी बड़ी
आसानी से देश का दुश्मन करार
दे रहा है। चौराहे पर खुद को
यदि भाजपा का समर्थित न जताओ
तो भगवाप्रेमी उसे हिकारत की
नजर से देख रहे हैं। एक स्वतंत्र
विचार को पोषित करना आज जान
का खतरा बन चुका है। मीडिया
का एक बड़ा वर्ग बिना किसी जमीनी
तहकीकात किये आंख बंदकर फरमान
की तर्ज पर खबरें प्रसारित
करने में जुटा हुआ है। जो
पूर्णत:
एकपक्षीय
सी प्रतीत हो रही हैं। देश की
सम्प्रभूता और अखंडता के
लिये इन कृत्यों को आज जितना
जायज बनाया जा रहा है। बरसों
पुरानी तर्कों के आधार पर इसे
जितना आवश्यक करार दिया जा
रहा है। वह स्वयं में देशद्रोह
है।
नफरत
का यह बीज लोगों की मानसिकता
को दूषित कर रहा है। हर तबके
को कई खंडों में बांट रहा है।
जरूरत है कि इस मसले पर राजनीति
के फेर में पड़ने के बजाय उसकी
सच्चाई को समझने के लिये
विश्लेषण किया जाए। आवश्यकता
यह नहीं है कि जो हो रहा है उसे
बिना कोई प्रश्न पूछे स्वीकार
कर लिया जाए। सम्पन्न और
सुखी समाज की कामना के लिये
यह बहुत आवश्यक है कि हर तथ्य
को गहराई से समझने के बाद
स्वीकारा या नकारा जाए। यह
तो तय है कि बिहार में विधानसभा
चुनाव के दौरान देश की छवि को
धूमिल करते हुये सहिष्णुता
का मुद्दा उठाया गया। देश में
डर का माहौल जताया गया। भले
ही आम लोगों के जीवन में इसका
कोई व्यापक प्रभाव न पड़ा
हो,
मगर
उन्हें माहौल में डर दिखाया
गया। देश की छवि को धूमिल करने
का कारण भी सिर्फ और सिर्फ
राजनीतिक था। उस समय केंद्र
सरकार को मौका नहीं मिल रहा
था और अब कम्युनिस्टों को
अवसर की दरकार है। विषय भी
देशप्रेम का है। हम भावुक
भारतीयों के लिये यह ऐसा वाद
है जिसके लिये हम हर कुतर्क
को भी स्वीकार करने को तैयार
हैं। किसी को नहीं मालूम की
जेएनयू में आयोजित की गई दो
दिनों की संगोष्ठियों में
वामपंथी विचारधारा को मानने
वाले छात्रसंघ अध्यक्ष
कन्हैया कुमार ने क्या कहा,
मगर
उन्हें यह जरूर मालूम है कि
वह राष्ट्रद्रोही है। हमारे
देश के संविधान की सबसे बड़ी
खूबी यही है कि उसके विशाल
हृदय में हर वर्ग के लिये
न्यायोचित स्थान सुनिश्चित
किया गया है। मगर उस संविधान
के आधार पर समाज और देश का
निर्माण या संचालन कराने वाले
तंत्र ने सबकुछ खोखला कर रखा
है। इसमें कोई दो राय नहीं कि
कन्हैया को जांच में दोषी
पाए जाने पर सख्त से सख्त
सजा मिलनी चाहिये। साथ ही,
इस
मसले पर आरोप सिद्ध होने पर
ऐसा दंड का प्रावधान किया जाना
चाहिये जो एक नजीर साबित हो
सके। मगर बिना जांच किये सिर्फ
शोरगुल और शक के आधार पर दोषी
बना देना,
निंदनीय
है। भारत के लोकतांत्रिक
संविधान में इस बिनाह पर किसी
को भी सजायाफ्ता बनाना,
सबसे
बड़ा अपराध होगा। हकीकत तो यह
है कि राष्ट्रप्रेम के लिये
जरूरी नहीं है कि आप किसी खास
विचारधारा या धर्म को अपनाएं।
जरूरी तो यह है कि आप बिना किसी
धर्म को अपनाए ही अपने देश के
प्रति प्रेम और सम्मान साबित
करते हैं।
अब
जेएनयू का मसला मात्र चंद
छात्रों के कथित देशविरोधी
नारों तक ही सीमित नहीं रह गया
है बल्कि अब यह दो विचारधारा
की लड़ाई में तब्दील हो चुकी
है। उत्तरी और दक्षिणी छोर
जिस तरह कभी नहीं मिल सकते या
जिस तरह गगन और जमीन एक दूसरे
का पर्याय नहीं बन सकते ठीक
उसी तर्ज पर दक्षिणपंथी और
वामपंथी विचारधारा का आपस
में कभी मिलन या समझौता नहीं
हो सकता है। एक धर्म के आधार
पर अपने सिद्धांतों की विवेचना
करता है तो दूसरा धर्म को अफीम
करार देता है। इन हालातों में
देश की जनता को अब पूरे मामले
में अपना नजरिया खुद बनाने
के लिये संकल्पित होना चाहिये।
यह राष्ट्रद्रोह है या राजनीति,
इसका
फैसला भी जनता अपने विवेक से
ले तो बेहतर है। हालांकि,
इस
वैचारिक और शारीरिक संग्राम
में या तो देश में वामपंथ का
अंत हो जाएगा या फिर इसके लिये
एक नया ‘सूर्योदय’ आएगा। उधर,
राममंदिर
के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट
का जबसे ‘पहरा’ लग गया है तबसे
भाजपा और आरएसएस के लिये राजनीति
करने के लिये मुद्दों का अभाव
हो गया था। ऐसे में दोनों ही
विपरीत विचारधारा को मानने
वाले दलों के लिये जेएनयू का
मसला एक निर्णायक मौका है।
अत:
जनता
को सिर्फ राजनेताओं की दलीलों
पर ही नहीं अपने विवेक के आधार
पर निर्णय लेना होगा। इस बीच
गलियों में,
चौराहों
पर या नुक्कड़ों में राष्ट्रभक्त
होने का प्रमाणपत्र जारी करने
वालों पर कानून का शिकंजा कसना
बहुत जरूरी है। यदि समय रहते
ऐसा न किया गया तो वह दिन भी
दूर नहीं जब हर ओर से यही आवाज
आने लगेगी ‘डराते हैं
राष्ट्रप्रेमी’।
जय
हिंद।।।।।
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