तू ऐसे क्यों रोता है
रेत हाथ से खोता है
कांटे क्यों तू बोता है
तुझमें इच्छाशक्ति है।
अपनी क्षमता को पहचान
अपने मन में देखो मान
तू प्रभु की है संतान
तुझमें इच्छाशक्ति है।
लगता क्यों तू हारा सा
'जीवन' का हत्यारा सा
बहे चला जा धारा सा
तुझमें इच्छाशक्ति है।
वर है यह जीवन तेरा
जिसे तेरे तम ने घेरा
हार है कालचक्र का फेरा
तुझमें इच्छाशक्ति है।
जग से क्यों तू भाग रहा
दुख दर्दों का मारा सा
आसमां के टूटे तारा सा
तुझमें इच्छाशक्ति है।
अभी स्वस्थ तेरी 'स्नायु' है
सामर्थ्य से ज्यादा वायु है
तेरी इच्छा ही दीर्घायु है
तुझमें इच्छाशक्ति है।
21 अप्रैल, 2006 को डायरी में लिखी इस कविता को आज कर रहा हूं पेश।।।
#लिखने_की_बीमारी_है।।।।
रेत हाथ से खोता है
कांटे क्यों तू बोता है
तुझमें इच्छाशक्ति है।
अपनी क्षमता को पहचान
अपने मन में देखो मान
तू प्रभु की है संतान
तुझमें इच्छाशक्ति है।
लगता क्यों तू हारा सा
'जीवन' का हत्यारा सा
बहे चला जा धारा सा
तुझमें इच्छाशक्ति है।
वर है यह जीवन तेरा
जिसे तेरे तम ने घेरा
हार है कालचक्र का फेरा
तुझमें इच्छाशक्ति है।
जग से क्यों तू भाग रहा
दुख दर्दों का मारा सा
आसमां के टूटे तारा सा
तुझमें इच्छाशक्ति है।
अभी स्वस्थ तेरी 'स्नायु' है
सामर्थ्य से ज्यादा वायु है
तेरी इच्छा ही दीर्घायु है
तुझमें इच्छाशक्ति है।
21 अप्रैल, 2006 को डायरी में लिखी इस कविता को आज कर रहा हूं पेश।।।
#लिखने_की_बीमारी_है।।।।
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