अभी मुझको तपना है...

अब तक गोद में पला किया
नहीं किसी का भला किया
दिया नहीं बस लिया-लिया
                                   अभी मुझको तपना है।

अब तक माटी का ढेला था
हर पल से बस खेला था
जग मनोरंजन का मेला था
                                    अभी मुझको तपना है।
थोड़े दुख से रोता था
कर्म के  वक्त सोता था
पथ में कांटे बोता था
                                   अभी मुझको तपना है।
करता था मैं छांव की खोज
तुच्छ सी थी मेरी सोच
अब बढ़ा रहा हूं अपना ओज
                                  अभी मुझको तपना है।
अब सपनों को मैंने जाना है
मंजिल मुझको पाना है
सबसे आगे आना है
                                 अभी मुझको तपना है।
अब जिह्वा पर काबू पाना है
कर्म की चाक पर जाना है
वो पाना है जो अंजाना है
                                अभी मुझको तपना है।

Comments

Unknown said…
अब सपनों को मैंने जाना है
मंजिल मुझको पाना है
सबसे आगे आना है
खूबसूरत पंक्तियां... बहुत खूब नीरज।।
Neeraj Express said…
बहुत-बहुत धन्‍यवाद कुशल :D
Sunil Yadav said…
ये लाइने इंसान को बहुत कुछ सिखाती हैं: अपनी मंजिल पाने के लिए और सदा आगे बढने के लिए तपना तो बहुत जरूरी है: अच्‍छी लाइनों के लिए बधाई:
Neeraj Express said…
धन्‍यवाद सुनील।