दोहन के दंश से छटपटाते श्रमिकों का दिन है आज

विश्वकर्मा पूजा के दिन जगह-जगह लोग लोहे की मशीनों और गाडिय़ों की पूजा करेंगे. तमाम फैक्ट्रियों में उत्सव सा माहौल होगा. पूजा-पाठ के बाद खाने-पीने की उचित व्यवस्था होगी. कंपनियों को सजाया जाएगा. सुबह से लेकर शाम तक चहल-पहल होगी. फैक्ट्रियों के हूटर बजाते सायरनों को सुनकर आज के दिन कोई भी मजदूर टूटे मन से घर से रवाना नहीं होगा. वह पूरी ऊर्जा के साथ पूजन सामग्री लिए अपनी कर्मस्थली की ओर भागा जाएगा. उसके इंतजार में उसके बच्चे और बीवी दोपहर के बाद राह तकेंगे. वे इंतजार करेंगे कि उनके घर में मिठाई आएगी और खुशियां बांटीं जाएंगी. 

चौबीस घंटे की खुशी 
मगर अजीब सी बात है कि ठीक चौबीस घंटे के बाद वही फैक्ट्री मजदूर अपनी दुर्दशा के लिए कंपनी मैनेजमेंट को कोसेगा. वह चिढ़ जाएगा सायरन का आवाज सुनते ही. वह मरे हुए मन से अपनी साइकिल चलाकर घर से रवाना हो जाएगा. मात्र एक दिन की इस खुशहाली के पीछे के कारणों की तलाश करना बड़ा ही आसान है. कारण वही है मिल मालिकों का धन प्रेम. मजदूर के पसीने से उन्हें चिढ़ है. वे कभी नहीं चाहते कि एक मजदूर कभी भी आर्थिक मजबूती पाकर उनके सामने खड़ा हो सके. तभी तो महंगाई के इस दौर में भी चार अंकों के आंकड़े की तनख्वाह को पाने के लिए भी उन्हें हर पल अपने स्वाभिमान से समझौता करना पड़ता है. वे डरते हैं मैनेजमेंट के लोगों के पैरों की आहट सुनकर. श्रमिकों को स्वावलंबी बनाने का दम भरने वाले राजनेता भी उनकी इस बदहाली के लिए कुछ नहीं करते. वे ऐसा कोई कदम नहीं उठाते जिससे मजदूरों को उनका वाजिब हक मिल सके.

उन्‍हें मिलना चाहिए हक 
विश्वकर्मा पूजा के दिन ही वे सिर्फ खुशियां मनाते हैं. मिठाई खाते हैं और गम हल्का करते हैं. सिर्फ कुछ घंटों की इस खुशहाली को मजदूर जीवन भर जी सकें, इसके लिए उन्हें एक मजबूत पायदान की आवश्यकता है. उन्हें एकजुट होकर अपनी दयनीय स्थिति और शोषण के खिलाफ मिल मालिकों से सामना करना होगा. राजनेताओं को सिर्फ जुबानी ही नहीं जमीनी तौर पर भी श्रमिकों के पक्ष में खड़ा होना पड़ेगा. जिंदगी को खुशहाल तरीके से जीने के लिए उन्हें सिर्फ विश्वकर्मा पूजा के दिन सम्मान पाने की जरुरत नहीं है. ये उनका हक है और यह हक उन्हें मिलना ही चाहिए.

Note: फोटो का क्रेडिट गूगल इमेज के नाम है!!! भविष्‍य काल में यह लेख इसलिए लिखा गया है ताकि यह हमेशा नवीन रहे।।।। 

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