छिछले 'विश्वास' की 'कांग्रेस कुमार' को छिछली चुनौती



आम आदमी पार्टी को दिग्गजों का साथ मिल रहा है. लोग बड़ी तेजी से इस उभरती और लगभग उभर चुकी पार्टी का दामन थाम रहे हैं. अच्छी बात है, बदलाव की बयार चल रही है. इस पार्टी की सबसे बड़ी खासियत है कि यह जनता के बीच कराए गए सर्वेक्षण के आधार पर फैसले लेती है. ऐसा पहली बार हो रहा है जब सत्ता के गलियारों के फैसले में आम जनता का मत लिया जा रहा है. मुझे इस पार्टी की यही बात सबसे ज्यादा पसंद है. मगर इस पार्टी के एक स्वयंभू युवा नेता कुमार विश्वास का लखनऊ आगमन पर राहुल गांधी के क्षेत्र के संसदीय चुनाव लडऩे का फैसला मेरी समझ में नहीं आया. दरअसल, मेरा मानना है कि कुमार विश्वास भले ही एक अच्छे कवि हैं. वे एक अच्छे वक्ता हैं. वे टीआरपी बटोरने के सारे टिप्स के भी पारखी हैं. लेकिन, वे एक अच्छे नेता नहीं हो सकते. वे आरोप लगा सकते हैं लेकिन किसी के आरोपों को न्याय नहीं दिला सकते. वे अरविंद केजरीवाल के की छाया तक नहीं हो सकते. ऐसे में वे किस गुमान के आधार पर राहुल गांधी को टक्कर देने की ठान बैठे. ऐसा नहीं है कि राहुल एक बड़े जनाधार वाले नेता हैं. उनकी हरकतें तो ऐसी लगती हैं जैसे वे विधायक की हरकतों से ऊपर ही नहीं उठ पा रहे हैं. उन्हें चुनौती देना कोई बड़ी बात नहीं है. मगर कुमार विश्वास को खुद पर इतना विश्वास कैसे हो गया कि वे अमेठी से चुनाव लडऩे की ताल ठोंक रहे हैं. उन्हें आप पार्टी से जुड़े रहकर राज्यसभा में मनोनीत होने का इंतजार करना चाहिए. उन्हें अपने ऊपर इतना दंभी विश्वास नहीं रखना चाहिए. यह फैसला लेकर उन्होंने खुद को हाशिए पर भेजने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है. उनके अंदर अभी छिछलेपन की बू आती है. सस्ती लोकप्रियता बटोरने की तकनीक नजर आती है. हां, मैं कुमार विश्वास की लिखी भावपूर्ण, कर्णप्रिय और रसभरी कविताओं की पंक्तियों को मजे लेकर पढ़ता हूं. वे अगर आम आदमी पार्टी का लिटरेचर संभाले तो उन्हें शोभा देगा. इस तरह चुनाव में उतरकर आम आदमी पार्टी का टिकट बर्बाद करने और यूपी में बनने वाली भावी बुनियाद में तेजाब डालने का काम नहीं करना चाहिए. उन्हें तो अभी सधी हुई भाषा का इस्तेमाल करना सीखना चाहिए. उन्हें अभी जनाधार को पाने के लिए जन के दर्द और जनसमस्याओं का अंत करने विचारों को रट्टा मारकर याद करना चाहिए. कुमार विश्वास के अतिविश्वास में आकर लिए गए इस फैसले को मेरा मानना है कि बहुतेरे लोग गले के नीचे नहीं उतार पाएंगे. छिछली राजनीति करने वाले राहुल गांधी को छिछले स्तर की समझ रखने वाले कुमार विश्वास की चुनौती सच में किसी चुटकुले से कम नहीं है.

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