[मेरे एक मित्र प्यार के शिकार हो गए। काफी दिनों के बाद अचानक मिल गए तो मैंने लपक लिया। पूछा, कहां थे बंधुवर, तो बोल पडे मत पूछो यार हम क्या से क्या हो गए। कभी चौतरफा चिल्लाते थे आज मुख-बधिर से बीमार हो गए। हालत जनाब कि बयां कर रही थी कि प्यार का शिकार हैं। हमने चुटकी ली तो भरे मन से सुनाते चले गए अपना हाल-ए-दिल।............... अब पेशेवर पत्रकार हूं तो खुलासा कर रहा हूं कि उन्होंने क्या कहा। एक सेकेंड, इसे स्टिंग मत समझिएगा उनसे पूछकर ही छाप रहा हूं। दोस्त हैं वो मेरे। इसका गुमान है मुझे।]
नोट: आगे के शब्द मेरे गुमनाम दोस्त के हैं.......... तो पढिए।
बडा मजा आया कुछ दिन की गुमनामी में। ये गुमनामी कुछ दिन नहीं, महीनों चली। कभी इंसान बना, कभी भगवान और कभी कुत्ता। हाए, वो चीज ही ऐसी है कि रूप लेता चला गया और खुद को खोता चला गया। मगर याद बहुत आई......... आप सबकि जनाब। आखिर आती भी क्यों न आपने मुझे उसी रूप में स्वीकारा जिस
रूप में मैं हूं। कम से कम कठपुतली का नाच नचाने की कोशिश तो नहीं की। हाए.................. आइए आपको बताता हूं कि इन दिनों किस घाट का पानी पी रहा था। खैर, रहने दीजिए घाट की बात। इन दिनों क्या नहीं कर सका वो जानिए......... सबसे ज्यादा जो काम करता था वो काम नहीं कर सका यानी सुकून से रहना। लोगों को खुश रखना। खुश रहना। बीच में लक्ष्य से भटकाव का एहसास हुआ तो सोचा शायद यही लक्ष्य है। मगर वो लक्ष्य नहीं मरिचिका थी। हाए.................................... । समय-समय पर सोचा कि शायद मैं गलत हूं। मगर कोई अपनी गलती को स्वीरकारता कहां है। खैर, दुनिया का नियम भी है कि जो दुत्कारे उसी के पास जा प्यारे, तो जाने दिया। सच कहूं तो मैं भी दुत्कारा गया। कभी शब्दों से कभी बातों से मारा गया। मगर कुत्ता बनना तय था तो क्या करते। उसे कभी मेरा भरोसा न था। उसे मैं चटनी लगता था। खैर, मैं चटनी नहीं पूरी थाल हूं। इस बात का एहसास उसे अब कहां होगा। देखा फिर भटकाव आ गया नीरज भाई। मुझे शायद वो साबुन समझती है, जिससे हाथ धो लो और बाथरूम, फ्लस या वॉश बेसिन में बहा दो। मगर मैं तो घी हूं न। जब हाथ में लगूंगा तो चिकनाई दिखाउंगा ही। मुझे कोई इस्तेमाल नहीं कर सकता। खैर, मैंने बात को काटा और पूछा हुआ क्या? तो बोले मुझे भी नहीं पता।कहानी का अंत क्यों किया, तो बोले वो समझती ही नहीं मुझे। मजाक और मुझमें बडा अंतर है। अस्ितत्व खो सकता हूं स्वाभिमान नहीं। मैं समझ गया कि मामला कुछ ज्यादा ही गंभीर है तो ज्यादा छेडा नहीं। बस इतना कहकर उन्हें समझा दिया कि कोई बात नहीं बेटा बिल्ली शेर को खा गई, वो बदकिस्मती को भा गई जो उसने तेरा प्यार ठुकरा दिया। इतना प्यार तो कोई पत्थर से भी कर देता तो आलम ये होता कि वो जी उठता। मगर राह पकडने से पहले मंजिल और मरिचिका में अंतर पहचानना सीखें। फिर जीने की कोशिश करें।दोस्त का चेहरा उदास था, मेरा वो बडा खास था। मगर उसको खुद में ज्यादा
नोट: आगे के शब्द मेरे गुमनाम दोस्त के हैं.......... तो पढिए।
बडा मजा आया कुछ दिन की गुमनामी में। ये गुमनामी कुछ दिन नहीं, महीनों चली। कभी इंसान बना, कभी भगवान और कभी कुत्ता। हाए, वो चीज ही ऐसी है कि रूप लेता चला गया और खुद को खोता चला गया। मगर याद बहुत आई......... आप सबकि जनाब। आखिर आती भी क्यों न आपने मुझे उसी रूप में स्वीकारा जिस
रूप में मैं हूं। कम से कम कठपुतली का नाच नचाने की कोशिश तो नहीं की। हाए.................. आइए आपको बताता हूं कि इन दिनों किस घाट का पानी पी रहा था। खैर, रहने दीजिए घाट की बात। इन दिनों क्या नहीं कर सका वो जानिए......... सबसे ज्यादा जो काम करता था वो काम नहीं कर सका यानी सुकून से रहना। लोगों को खुश रखना। खुश रहना। बीच में लक्ष्य से भटकाव का एहसास हुआ तो सोचा शायद यही लक्ष्य है। मगर वो लक्ष्य नहीं मरिचिका थी। हाए.................................... । समय-समय पर सोचा कि शायद मैं गलत हूं। मगर कोई अपनी गलती को स्वीरकारता कहां है। खैर, दुनिया का नियम भी है कि जो दुत्कारे उसी के पास जा प्यारे, तो जाने दिया। सच कहूं तो मैं भी दुत्कारा गया। कभी शब्दों से कभी बातों से मारा गया। मगर कुत्ता बनना तय था तो क्या करते। उसे कभी मेरा भरोसा न था। उसे मैं चटनी लगता था। खैर, मैं चटनी नहीं पूरी थाल हूं। इस बात का एहसास उसे अब कहां होगा। देखा फिर भटकाव आ गया नीरज भाई। मुझे शायद वो साबुन समझती है, जिससे हाथ धो लो और बाथरूम, फ्लस या वॉश बेसिन में बहा दो। मगर मैं तो घी हूं न। जब हाथ में लगूंगा तो चिकनाई दिखाउंगा ही। मुझे कोई इस्तेमाल नहीं कर सकता। खैर, मैंने बात को काटा और पूछा हुआ क्या? तो बोले मुझे भी नहीं पता।कहानी का अंत क्यों किया, तो बोले वो समझती ही नहीं मुझे। मजाक और मुझमें बडा अंतर है। अस्ितत्व खो सकता हूं स्वाभिमान नहीं। मैं समझ गया कि मामला कुछ ज्यादा ही गंभीर है तो ज्यादा छेडा नहीं। बस इतना कहकर उन्हें समझा दिया कि कोई बात नहीं बेटा बिल्ली शेर को खा गई, वो बदकिस्मती को भा गई जो उसने तेरा प्यार ठुकरा दिया। इतना प्यार तो कोई पत्थर से भी कर देता तो आलम ये होता कि वो जी उठता। मगर राह पकडने से पहले मंजिल और मरिचिका में अंतर पहचानना सीखें। फिर जीने की कोशिश करें।दोस्त का चेहरा उदास था, मेरा वो बडा खास था। मगर उसको खुद में ज्यादा
विश्वास था, तो हमने कहा, मौज करो यार! झटके में भी अब मत करना प्यार।
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