वो मेरी है गीता सार

वो मेरी है गीता सार
शीतल झरने की शीतल धार
संग रहे जो भव के पार
वो है मेरी प्राण प्रिये।
फूलों जैसी वो कोमल है
वायु जैसी वो चंचल है
बाल उसके मलमल हैं
वो है मेरी प्राण प्रिये।
सब उस पर न्‍यौछावर है
उसका मन सरोवर है
प्रकृति उसके जेवर हैं
वो है मेरी प्राण प्रिये।
कोयल जैसी जो गाती है
किरणों संग नहाती है
सपनों में मेरे आती है
वो है मेरी प्राण प्रिये।
वो मेरी शक्ति है
निश्‍छल उसकी भक्ति है
हर पल राह वो तकती है
वो है मेरी प्राण प्रिये।
नहीं उससा कोई तर्ज
उसकी इच्‍छापुर्ति मेरा फर्ज
कभी कम न होगा उसका कर्ज
वो है मेरी प्राण प्रिये।
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Comments

pradeep said…
achha likha... :)
Maan Sengar said…
"वो मेरी है गीता सार" पंक्तियों के भाव अच्छे है. शुरुआत में इसे पढ़ कर लगा की एक युवा प्रेम की बात हो रही है, पर अंत तक आते-आते अहसास हुआ की ये माँ के प्रेम की बात है. क्या में सही हूँ. अपनी प्रतिक्रिया जरुर दें.