जिद अधूरी पर तमन्‍नाएं पूरी

एक रोज मुझे वो मिल गई
मैं हंसा तो वो खिल गई
बात हुई और रात गई
जिद में मैंने इक बात कही
वो पूछ उठी हिचकी ले के
मैं सहम गया बिन शब्‍द कहे
उनमें जिद अधूरी थी पर तमन्ना पूरी थी
फिर भी थोडी हिम्‍मत कर के
मैं कह बैठा उस बचपन से
तुम बात कहो, मैं खो जाउं
तुम बाल ढंको, मैं सो जाउं
फिर वो मुझ पर हंसती थी
उसे देख मैं लरकता था
जब भी मेरी आंख खुले
मैं उसके लिए तडपता था
पर कह न सका मैं दिल की बात
कि उसे चाह रहा हूं मैं दिन-रात
मेरी जिद बात करने की थी
वो मुझसे बात करे हंसकर
मैं बहक गया इक दिन उस पर
कि कह बैठा मैं दिल की बात
कि चाह रहा उसे दिन-रात
उसने उसे मजाक कहा
उसने तुम की जगह फिर आप कहा
मैं टूट गया शीशे जैसा
टुकडे-टुकडे हीरे जैसा
फिर उसने हाथ बढाया था
पर उसे चुभ गए मेरे जजबात
मैं फिर से आज अकेला हूं
तन्‍हाई का मेला हूं
फिर उसको बंधन मुक्‍त किया
जिसको अपना था जिया दिया
वो जहां रहे बस खुश रहे
अब यही जिद मेरी दिन-रात
मेरी जिद अधूरी थी पर तमन्‍ना पूरी थी......
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Comments

kuch tamannaye jindgi bhar poori nahi hoti dost. ham kisi se kah bhe nahi pate ki log hamari kamjori ka majak udayege. acchi rachna..........
Sunil Yadav said…
बहुत कुछ कह गए तुम चंद लाइनें, मुझे लगता है लिखने के साथ ही दिल की बीमारी का हाल सुना दिया तुमने, एक बार फि‍र बढिया लाइनों के लिए बधाई
Neeraj Express said…
शुक्रिया सुनील।