कामयाबी की छाया है कुंठा

कामयाबी शब्‍‍द दिल में उजाले को जन्‍मा देती है। बडी बेसब्री से लोग करते हैं इसका इंतजार। कोई एक साल, कोई दो साल, कोई सालों साल तो कोई कुछ पल। मगर इंतजार की इस परीक्षा से सभी कामयाब लोगों को ए‍क बार गुजरना पडा है। हां, इस बीच उन पर, हम पर और सब पर एक साया जरूर छा जाता है। उस छाए हुए साया का नाम है कुंठा। जी हां, कुंठा कामयाबी की छाया है। बशर्ते हम उसे खुदपर हावी न होने दें। उससे लडें, झगडें और मजबूर कर दें कि वह जाए और कामयाबी आए। मगर अफसोस है कि इस प्रतिस्‍पर्धा में कुंठा कामयाबी को लोगों से दूर करती जा रही है। इसलिए मेरी सलाह है कि इस कुंठा को दिल से निकालकर कामयाबी को पाने की कोशिश करें।

Comments

vermaji said…
Its very nice.
sk
Gulshan Dwivedi said…
आदरणीय नीरज जी जैसा आपने अपनी आखिरी पंक्‍ितयों में कहा कि कुंठा छोडकर कामयाबी पाने की कोशिश करें, लेकिन आपने अपनी शुरू की पंक्‍ितयों में कहा िक कामयाबी की छाया कुंठा दोनों पंक्‍ितयों में काफी विरोधाभास है प्‍लीज समझाने का कष्‍ट करें
Neeraj Express said…
आदरणीय गुलशन जी मेरे इस पूरे लेख का आशय यही है कि वे जो कामयाब होने की चाह रखते हैं, उनमें कुंठा आती है। वे एक समय के बाद कुठित होते हैं। अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से ऊब से जाते हैं। ऐसे लोग जब अपने अंदर की काबिलियत को पहचानने के बाद कदम उठाते हैं, तो उन्‍हें रास्‍ता मिलता है। यानी शुरुआती बात का स्‍पष्‍टीकरण तो यह रहा। वहीं, अंतिम लाइनों का अर्थ यह है कि कुंठा में आकर खुद को खत्‍म करने और शिथिल होने की आवश्‍यकता नहीं है। कुंठा का कारण पहचानकर अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हों।
Gulshan Dwivedi said…
धन्‍यवाद नीरज जी अब आपने विस्‍तार से समझाया लेकिन आपके लेख में कामयाबी की छाया
कामयाबी आयेगी तभी उसकी छाया होगी
अगर कामयाबी आ गयी तो कुंठा आने का प्रश्‍न ही नहीं खडा होता प्‍लीज इस थोडा प्रकाश डाले

आपका गुलशन द्विवेदी
Neeraj Express said…
प्रिय गुलशन जी अापका सवाल जायज है। यहां कामयाबी और कुंठा को लेकर आपने जो दूसरा सवाल दागा है उसका उत्‍तर यह है कि कामयाबी भी एक समय के बाद छोटी लगने लगती ह‍ै। कोई और मंजिल हमें फिर से चलने को मजबूर करती है। यही कारण है कि सफल लोगों ने अपने जीवन में कभी विराम नहीं लगाया। वे एक के बाद एक नित नए अायाम रखते जाते हैं। रही बात लेख में यूज किए गए शब्‍दों की तो मैं यहां यह बताना चाहुंगा कि यह लेख जब मैंने लिखा था तब मैं 100 शब्‍द की खबर लिखने से पहले भी माथा पोछा करता था। शब्‍दकोश की कमी के कारण मैं इस पूरे मामले को तब बयां नहीं कर पाया था। मगर धन्‍यवाद आपका कि आपने मुझसे ये सवाल पूछकर आज इस लेख को सम्‍पूर्ण आकाश दिलाने का अवसर दिया।।।।।।
Gulshan Dwivedi said…
नीरज जी आपको साधुवाद आपने जो आपने मेरी टिप्‍पणी को काफी स्‍पोर्टी स्‍िप्रट से लिया, हर किसी के अंदर ये माद़दा नहीं होता, आप ऐसे ही निरंतर लिखते रहे

आपको शुभकामनाएं
Neeraj Express said…
धन्‍यवाद दाेस्‍त। सदैव यूं ही सवाल-जवाब करते रहें। हम दोनों को एक-दूसरे से काफी कुछ सीखने को मिलेगा। खासकर, मुझे।