यकीन मानिए युवाओं को सिगरेट पीना बहुत पसंद हैं। बात उनकी हो रही है जो सिगरेट पीते हैं या पीने की चाह रखते हैं। मगर यह तो सिगरेट पीने वाला ही बता सकता है कि वह इससे कितना संतुष्ट है। इससे दिल को सूकुन मिले या न मिले मगर चंद रुपयों की उधारी जरूर मिल जाती है। ऐसे में मैं किसी और की नहीं अपने दोस्तों की और अपनी कहानी को आपके सामने रखना चाहता हूं। हम हर माह के अंत में सिगरेट छोड़ने का संकल्प लेते हैं। मगर महीने की शुरुआत यानी जब जेब गर्म हो जाया करती है तो उसे तिलांजलि देने की कोशिश भी नहीं करते। फिलहाल मैं सिगरेट छोड़ने के विचार में हूं। देखते हैं मैं सफल हो पाता हूं या नहीं। मगर सिगरेट को लेकर मैं आपसे कुछ घटनाएं बताना चाहता हूं। उम्मीद करता हूं आपको अपने बीते दिन याद आ जाएं।
रूम में हम चार लोग रहते हैं। मैं किसी का नाम नहीं लूंगा। सभी सिगरेट के महारथी हैं। पल भर में सिगरेट की डिब्बी को खाली करने की सभी कलाओं के हम ज्ञाता हैं। दिन की शुरुआत आंख खोलने पर ही मानते हैं। भले सूर्यदेव कितनी ही देर से मुखड़ा दिखा रहे हों। उससे हमें कोई लेना-देना नहीं होता। बस आंख खुली और हमने सुबह होने की घोषणा कर दी। भले शाम के छह बज रहे हों। खैर, अब सुबह के नित्य कर्मों से निपटना तो है ही। इसके लिए सिगरेट चाहिए। यदि हमारे पास अपनी सिगरेट है तो ठीक नहीं तो शुरू होती है खरीद-फरोख्त। साथ वाले से कहा सिगरेट है। उसने तपाक से कहना है नहीं है या है भी तो एक ही है। खुद के लिए रखी है। जरूरत है तो ले लो मगर चार वापस करनी होगी। लो बेमतलब में सुबह-सुबह ही बिक गए। फिर खाना खाने के बाद एक सिगरेट चाहिए। उससे पहले तो चाहिए ही चाहिए। फिर उस समय से लेकर ऑफिस आने तक सिगरेट पीना एक बूरी लत सी बन चुकी है। ऑफिस में कुर्सी छोड़कर और बाहर भागकर सिगरेट पीना ही है। जैसे लगता है कि उसी के लिए जी रहे हैं। लगातार पी रहे हैं। फिर रात में खाना खाने के पहले और बाद में सिगरेट की तलब बेचैन कर देती है। उसे भी शांत करना ही है, करते भी हैं। देखते-देखते महीने का अंत हो जाता है और पनवाड़ी और दूसरे दुकानदार हमारा इंतजार करने लगते हैं। फिर हम अपनी खुशी से उनकी मुराद पूरी करते हुए जेब ढीली कर देते हैं। उस समय हम पान वाले से भी कहते हैं कि हम जल्द ही सिगरेट छोड़ देंगे। रूम पर लौटने के बाद आपस में भी कहते हैं कि सिगरेट छोड़ देना चाहिए। सभी हामी भरते हैं और एक सिगरेट सुलगा लेते हैं। फिर अगले दिन से पुरानी दिनचर्या को अपना लेते हैं। मगर अब मैं आप सभी से कहता हूं कि सिगरेट पीना और पिलाना दोनों ही बुरी आदतें हैं। कभी सोचिए उन रुपयों से आप हर महीने कुछ और कर सकते हैं जो आपके पास नजर तो आएगा। इसलिए आप सभी अनुरोध है कि इस आदत को अपनाइए मत और यदि अपना चुके हैं तो छोड़ दीजिए। मैंने तो इसे त्यागने का संकल्प ले लिया है।
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shikha shukla
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