मेरे एक बड़े भाईसाहब हैं। वे मेरे पहले अखबारी संस्थान में गुरु भी रहे। अभी भी हैं। न जाने उनमें ऐसा क्या है जो मुझे उनसे बात करना। डांट खाना। मजाक करना और झगड़ा करना बहूत पसंद है। अकसर हम छोटी-छोटी बातों में लड़ भी जाते हैं। वे मुझे हमेशा डांटते रहते हैं और मैं हँसता रहता हूँ। हालाँकि, मेरा घरेलु वयव्हार काफी सख्त है। मगर न जाने उनमें ऐसा क्या है की मैं उनकी कड़ी से कड़ी बात क भी विरोध नहीं कर पाता। आप सोच रहे होंगे। ऐ तो आपसी बात है, इसमें जगजाहिर करने जैसा क्या है। मगर आप दिल पर हाथ रखकर बोलिए क्या आपके जीवन ऐसा ही कोई रिश्ता नहीं है, जो अनजाने में ही बना हो, लेकिन हरदिल अजीज हो। सोच में पड़ गये न। दरअसल, हम सभी की जिन्दगी में एक रिश्ता ऐसा कहीं न कहीं बन ही जाता है। उसे कभी हम भइया, कभी बहन, कभी दोस्त, कभी बाबा और कभी अनाम ही रहने देते हैं। इस फेहरिश्त में दो प्यार करने वालों का फ़िलहाल कोई जिक्र नहीं है। क्योंकि, वह तो रूहानी रिश्ता है।
यूँ सोच रहा था की घर छोड़ बाहर जाने पर ऐसे रिश्ते बनते कैसे हैं? जवाब मिला घर की तलाश में। जी हाँ, घर से दूर होने पर हम हर अनजान चेहरे में एक रिश्ता तलाशने लगते हैं। जैसे- ठेले पर सब्जी बेचने वाला एक बुजुर्ग अचानक ही काका हो जाता है। घर के बगल में रहने वाली अंटी अचानक ही मान की तरह सर्दी-बुखार होते ही नुश्खे बताने लगती हैं। इन रिश्तों की खोज घर की तलाश में होती है। अपनों से दूर इस भागदौड़ भरी जिन्दगी में अपनों की तलाश कभी आपने भी की होगी। हो सकता है की कर रहे हों.....
उन भाईसाहब की एक बात और बतलाना चाहूँगा। वे मुझसे हमेशा कहते, नीरज जिन्दगी को लेकर गंभीर हो जाओ और मैं उनकी इस बात को सिगरेट के छलों की तरह उड़ा देता। उनकी इस नसीहत का जवाब मैं अपनी बेशरम सी हंसी से देता। आज जब जीवन के प्रति गंभीर होना चाहता हूँ तो वे मुझे सलाह नहीं दे पाते। मुझसे दूर जो हैं। या मैं यह कहूं की वे मुझे अब गंभीर रूप में देख ही नहीं पाते, क्योंकि वे मुझसे दूर जो हैं। संभवतः यही कारण है की लोग कहते हैं बड़ों की बात तुरंत मान लेनी चाहिए। दरअसल, वे फिलहाल मुंबई में हैं और दिल्ली में।
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अंत में बशीर बद्र का एक शेर याद आ गया...
दालानों की धूप और छतों की शाम कहाँ
घर के बहार जाओगे तो घर जैसा आराम कहाँ
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मगर, घर के बहार ऐसे ही अनकहे रिश्ते हमारी रिश्तों की प्यास को तृप्त कर देतें हैं.....
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इससे आगे क्या कहूं। आप ख़ुद ही अह्सास करते हैं।