दिन दोपहर में गुम हो जाना ठीक नहीं
पथरीले पथ पर पांव बढ़ाना ठीक नहीं
फूँक-फूँककर कदम बढ़ाओ नया शहर है
हर किसी से हाथ मिलाना ठीक नहीं
अपने दिल को थाम के रखो ऐ 'नीरज'
हर पनघट पर प्यास बुझाना ठीक नहीं
किसी की हस्ती देख मत किस्मत को रो
छोटी चादर में पांव फैलाना ठीक नहीं
चल दिए जब नये सफ़र, पर तब क्या डर
मंजिल से पहले सुस्ता जाना ठीक नहीं
तुम्हें मिलेंगे हर रोज नये हमदर्द और दोस्त
पर हर पत्थर को शिवलिंग बतलाना ठीक नहीं

Comments

Udan Tashtari said…
सुन्दर रचना!



’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

-सादर,
समीर लाल ’समीर’
फूँक-फूँककर कदम बढ़ाओ नया शहर है
हर किसी से हाथ मिलाना ठीक नहीं
बहुत अच्छी रचना।
TAPAS said…
sachchayi agar shabdo ko dhak kar takleef na deti to ham kahi aur hote...........bahut badiya........nice blog like u.
Neeraj Express said…
बहुत-बहुत धन्यवाद अजीत।
Neeraj Express said…
अन्य सभी पाठकों का भी धन्यवाद।