प्रभात हो चली है



भवरों ने कमलों को त्यागा
राका दूजे ध्रुव को भागा
अँधेरे ने प्राण को त्यागा
प्रभात हो चली है

... आज के लिए बस इतना ही, पूरी कविता पढ़नी हो तो कभी फुरसत से बैठेंगे
आपका अजीज
नीरज

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