एक मुलाक़ात....

किसी से एक छोटी मुलाक़ात आपको जीने का मक़सद दे जाये ऐसा सुना हो तो होगा. मगर मैंने जीया है. जी रहा हूं. सिस्‍टा मूर्ति सर से मेरा परिचय कुछ ऐसा ही हुआ था. वह किसी कार्यक्रम में शिरकत करने के लिये कोयम्‍बटूर से उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ आये हुये थे. साल था 2020. महीना जनवरी का. तारीख थी 26 यानी गणतंत्र दिवस. मैं अपने रोजमर्रा के काम में उलझा हुआ था. तभी सुबह 10 बजे के करीब मेरे एक अजीज दोस्‍त सुनील यादव का फोन आया. वह एक बड़ी कंपनी में काम करते हैं. स्‍वभाव से शांत और दूसरों की मदद के लिये हर पल सजग रहने वाले सुनील ने मुझे घंटे भर में अपने पास आने को कहा. कहा, ‘हिंदी में एक किताब लिखवाने के लिये एक सज्‍जन लखनऊ आये हुये हैं. मैं चाहता हूं कि तुम उनसे एक बार मिल लो.’ मैंने इसे अपने प्रोफेशन का एक आम हिस्‍सा मानते हुये हामी भर दी. तुरंत ही तैयार होकर सुनील के पास जा पहुंचा. वहां मूर्ति सर बैठे हुये थे. चेहरे पर शांति और आवाज़ में कोमलता की मिठास लिये हुये. शुरुआती औपचारिक बातचीत के बाद उन्‍होंने मुझे एक किताब लिखने के लिये कहा. मैंने भी काम को समझते हुये रजामंदी दे दी. करीब आधा घंटा मुलाक़ात हुई. कम शब्‍दों में गंभीर बात हुई. हम साथ मिलकर काम करने को तैयार हो गये. घर आया. उनका प्रोजेक्‍ट गौर से पढ़ने-समझने लगा. कुछ दिनों के बाद जब काम पर जोर देने लगा तो समझ आया कि यह तो आत्‍मपरिवर्तन की सच्‍ची कहानियां हैं. जीवन को उदासीनता के चंगुल से निकालकर उत्‍साह से लबरेज होने की गाथाएं हैं. लिखता रहा. किताब में खोता गया. इस बीच कोरोना काल आ गया. घर में कैद हो गया. सब बदल गया. मगर इन कहानियों के लेखन और सिस्‍टा मूर्ति सर से फोन पर होने वाली बातचीत ने जीवन में उत्‍साह बरकरार रखा. कहानियों की रचना करते-करते मेरे मन से भी असंभव और हताशा जैसे विचार काफूर होते गये. मेरा मन परिवर्तित होता रहा.किताब पूरी हो रही थी. मेरी दिक्‍कतों का भी अंत होता जा रहा था. जब किताब पूरी हुई तो मेरी परेशानियों ने भी अपनी हार मान ली. अब सबकुछ संभव लगता है. इंसान जो चाहता है, उसे वही नसीब होता है. मन की शक्‍ति से दुनिया का संचालन होता है. सिस्‍टा मूर्ति सर से हुई एक मुलाक़ात ने मुझे जीने का एक नया नज़रिया दे दिया है. आप भी www.ipowercelebratelife.com पर अपलोड अपराजिता पुस्‍तक को मुफ्त में डाउनलोड कर पढ़ें. आपको भी यकिन हो जायेगा कि असंभव जैसा तो कुछ होता ही नहीं है. मेरा जीवन बदलने के लिये एक ‘मुलाक़ात’ काफी रहा और आपका जीवन उस किताब को पढ़कर स्‍वयं ही परिवर्तित होने लगेगा. 

धन्‍यवाद!   


Comments