आख़िर हर दाढ़ी वाला तुम्हें बेईमान क्यों नज़र आता है...

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फै़ज़़ अहमद फै़ज़ की लिखी नज़्म 'हम देखेंगे' को लेकर बवाल मचा है. एक नज़्म से हिंदू धर्म को खतरा हो जाएगा, कैसी पागलों जैसी बात करते हो यार. खैर, जहां फ़ैज़ साहिब को लेकर IIT शोध कर रहा है वहीं मैंने इस विषय पर कुछ लिखने की कोशिश की है...

जहां कम होता है ईमान तुम्हें मुसलमान नज़र आता है
आख़िर हर दाढ़ी वाला तुम्हें बेईमान क्यों नज़र आता है

जब भी बात होती है मदरसे की तो हो क्या जाता है तुम्हें
पाजामा ऊंचा पहने बच्चों में कोई क़लाम भी बन जाता है

गलतियां हमने भी बहुत की हैं हमेशा यह याद रहे दोस्त
देखने वालों को हमेशा हर क़ौम में इंसान नज़र आता है

नफरत फैलाने वालों ने तो फ़ैज़ की क़लम तक नहीं छोड़ी
ग़र गौर से सुनूं तो उस नज़्म में भी मेरा राम नज़र आता है...
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...तो आपको करना सिर्फ इतना है कि जहां बोल है, बस नाम रहेगा अल्लाह का...वहां मन ही मन में राम धुन सुन लो. चाहो तो चीख लो. इस आसान से आसन से लगे हाथ ही विवाद खत्म हो जाएगा. और हां, हिंदू-मुस्लिम से मौका मिले तो बेरोजगारी और GDP जैसी बातों पर भी चर्चा कर लेना.
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आओ सार्थक मुद्दों पर बहस करें. #लिखने_की_बीमारी_है।।।।।

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