मेरे मन के अंधियारे में, मिल जाती है मुझको छांव
मिल जाता है मुझको रस्ता, जिस पथ रखूं अपना पांव
मेरी भी यह इच्छा है कि प्यार से कोई मुझको थामे
मेरे मर जाने पर भी नाम 'नीरज' परिजन जानें
मेरे मन के अंधियारे में, मिल जाती है मुझको छांव
मरने पर जो भीड जो आए, मन के बल से दे वह कंधा
आंसू वे जो दिल से निकले गीला कर दे मेरा तमगा
ऐसी हो मेरी पहचान, दे दो मुझको इच्छादान
मेरे मन के अंधियारे में, मिल जाती है मुझको छांव
मुझको बांध करोगे क्या तुम, छोड दो यूं आजादी से
सच है प्यार सा हो गया, मनचाही बर्बादी से
सच कहूं तो डर लगता है मुझको अब आबादी से
सच है प्यार सा हो गया, मन चाही बर्बादी से
मेरे मन के अंधियारे में, मिल जाती है मुझको छांव
फुर्सत हो तो मुझसे मिलना, भीड भरी तन्हाई में
पूछ लेना तुम रस्ते से, रहता हूं उजियारे की खाई में
शहर से ज्यादा मुझको भाए, मेरा पगडंडी का गांव
मुड के देखूं तो दिखते हैं, मेरे पदचिन्हों के पांव
मेरे मन के अंधियारे में, मिल जाती है मुझको छांव
यह भी कोई जीवन है, सुबह उठे और शाम किया
जीवन तो कहते हैं उसको जो दूजों के नाम किया
खुद के मन में, खुद के दिल में, तो अपने ही रहते हैं
जो औरों के दिल में रहते, उसे ही मानव कहते हैं
मेरे मन के अंधियारे में, मिल जाती है मुझको छांव
भाग रहा हूं इस जग से मैं, भाग रहा परछाई से
फट जाता है मेरा मन अब जग की जगहंसाई से
मेरे माथे पर जो रखा है यह फूलों का ताज
दबी हुई अभिलाषा मेरी, देदो मेरा कल और आज
मेरे मन के अंधियारे में, मिल जाती है मुझको छांव
नई कलम से पेश कर रहा हूं पुरानी ही हाला
प्याला यह तो अपना है पर वही पुरानी मधुशाला
कोई भी जो गलती करता, तो देख रहा उपर वाला
यह वही मधुशाला है, वही पुरानी मधुशाला।
मिल जाता है मुझको रस्ता, जिस पथ रखूं अपना पांव
मेरी भी यह इच्छा है कि प्यार से कोई मुझको थामे
मेरे मर जाने पर भी नाम 'नीरज' परिजन जानें
मेरे मन के अंधियारे में, मिल जाती है मुझको छांव
मरने पर जो भीड जो आए, मन के बल से दे वह कंधा
आंसू वे जो दिल से निकले गीला कर दे मेरा तमगा
ऐसी हो मेरी पहचान, दे दो मुझको इच्छादान
मेरे मन के अंधियारे में, मिल जाती है मुझको छांव
मुझको बांध करोगे क्या तुम, छोड दो यूं आजादी से
सच है प्यार सा हो गया, मनचाही बर्बादी से
सच कहूं तो डर लगता है मुझको अब आबादी से
सच है प्यार सा हो गया, मन चाही बर्बादी से
मेरे मन के अंधियारे में, मिल जाती है मुझको छांव
फुर्सत हो तो मुझसे मिलना, भीड भरी तन्हाई में
पूछ लेना तुम रस्ते से, रहता हूं उजियारे की खाई में
शहर से ज्यादा मुझको भाए, मेरा पगडंडी का गांव
मुड के देखूं तो दिखते हैं, मेरे पदचिन्हों के पांव
मेरे मन के अंधियारे में, मिल जाती है मुझको छांव
यह भी कोई जीवन है, सुबह उठे और शाम किया
जीवन तो कहते हैं उसको जो दूजों के नाम किया
खुद के मन में, खुद के दिल में, तो अपने ही रहते हैं
जो औरों के दिल में रहते, उसे ही मानव कहते हैं
मेरे मन के अंधियारे में, मिल जाती है मुझको छांव
भाग रहा हूं इस जग से मैं, भाग रहा परछाई से
फट जाता है मेरा मन अब जग की जगहंसाई से
मेरे माथे पर जो रखा है यह फूलों का ताज
दबी हुई अभिलाषा मेरी, देदो मेरा कल और आज
मेरे मन के अंधियारे में, मिल जाती है मुझको छांव
नई कलम से पेश कर रहा हूं पुरानी ही हाला
प्याला यह तो अपना है पर वही पुरानी मधुशाला
कोई भी जो गलती करता, तो देख रहा उपर वाला
यह वही मधुशाला है, वही पुरानी मधुशाला।
Comments
फट जाता है मेरा मन अब जग की जगहंसाई से
मेरे माथे पर जो रखा है यह फूलों का ताज
दबी हुई अभिलाषा मेरी, देदो मेरा कल और आज
मेरे मन के अंधियारे में, मिल जाती है मुझको छांव
.................दोस्त दिल की बात लिख दी है , सुन्दर
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shikha shukla
http://baatbatasha.blogspot.com/
Dainik jagran
kanpur