खुशी वो मुझे बेदाम दे गया

खामोश अदाओं से कोई साज दे गया
मैं निराश था वो मुझे आस दे गया
बौर देख ज्‍यों चिडिया चहक जाती है
ऐसी ही खुशी वो मुझे बेदाम दे गया
अब हमेशा होठों पर मेरी मुस्‍कान रहेगी
मुझ नासमझ को वो यही काम दे गया
जाना की रोशनी का अपना ही मजा है
मुझ बेनाम को वो 'नीरज' नाम दे गया
ऐसा नहीं कि मुझे हंसना नहीं आता
जिसे अपना कहा वही मुस्‍कान ले गया
पर अब भी उस हंसी पर हक मेरा है
आपसे जो मिला तो इमाम मिल गया

खामोश अदाओं से कोई साज दे गया
मैं निराश था वो मुझे आस दे गया
बौर देख ज्‍यों चिडिया चहक जाती है
ऐसी ही खुशी वो मुझे बेदाम दे गया
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इमाम के नाम समर्पित।
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ब्‍लॉगर साथियों मुझे दिल्‍ली में अपनी गजलों की किताब छपवानी है। मगर इस बारे में मुझे ज्‍यादा जानकारी नहीं है। हो सके तो इस बारे में मुझे सलाह दें। मैं आपका आभारी रहूंगा।

Comments

Shekhar Kumawat said…
bahut khub



फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई